Sunday, January 31, 2016

Self Motivation

Declaration :- Below Self Motivation Stories and Thoughts are Collect from Facebook link of Self motivation Community

"नजरिये" की ताकत (Power of Attitude)
चीजें वही रहती हैं पर अगर "हम चाहें तो" नजरिया (Negative to Positive Attitude) सब कुछ बदल सकता है.
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A) बातें Negative Attitude के साथ :-
एक महान लेखक अपने लेखन कक्ष में बैठा हुआ लिख रहा था :-
1) पिछले साल मेरा आपरेशन हुआ और मेरा गालब्लाडर निकाल दिया गया. इस आपरेशन के कारण बहुत लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ा.
2) इसी साल मैं 60 वर्ष का हुआ और मेरी पसंदीदा नौकरी चली गयी. जब मैंने उस प्रकाशन संस्था को छोड़ा तब 30 साल हो गए थे मुझे उस कम्पनी में काम करते हुए.
3) इसी साल मुझे अपने पिता की मृत्यु का दुःख भी झेलना पड़ा.
4) और इसी साल मेरा बेटा कार एक्सिडेंट हो जाने के कारण मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गया क्योंकि उसे बहुत दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा. कार की टूट फूट का नुकसान अलग हुआ.
अंत में लेखक ने लिखा,
"वह बहुत ही बुरा साल था".
जब लेखक की पत्नी लेखन कक्ष में आई तो उसने देखा कि, उसका पति बहुत दुखी लग रहा है और अपने ही विचारों में खोया हुआ है. अपने पति की कुर्सी के पीछे खड़े होकर उसने देखा और पढ़ा कि वो क्या लिख रहा था.
वह चुपचाप कक्ष से बाहर गई और थोड़ी देर बाद एक दूसरे कागज़ के साथ वापस लौटी और वह कागज़ उसने अपने पति के लिखे हुए कागज़ के बगल में रख दिया.
B) बातें वही पर Positive Attitude के साथ
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लेखक ने पत्नी के रखे कागज़ पर देखा तो उसे कुछ लिखा हुआ नजर आया, उसने पढ़ा :-
1) पिछले साल आखिर मुझे उस गालब्लाडर से छुटकारा मिल गया जिसके कारण मैं कई सालों से दर्द से परेशान था.
2) इसी साल मैं 60 वर्ष का होकर स्वस्थ दुरस्त अपनी प्रकाशन कम्पनी की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ। अब मैं पूरा ध्यान लगाकर शान्ति के साथ अपने समय का उपयोग और बढ़िया लिखने के लिए कर पाउँगा.
3) इसी साल मेरे 95 वर्ष के पिता बगैर किसी पर आश्रित हुए और बिना गंभीर बीमार हुए परमात्मा के पास चले गए.
4) इसी साल भगवान् ने एक्सिडेंट में मेरे बेटे की रक्षा की. कार टूट फूट गई लेकिन मेरे बच्चे की जिंदगी बच गई। उसे नई जिंदगी तो मिली ही और हाँथ पाँव भी सही सलामत हैं.
अंत में उसकी पत्नी ने लिखा था,
"इस साल भगवान की हम पर बहुत कृपा रही, साल अच्छा बीता."
मित्रों, मान कर चलिए, मानव-जीवन में "प्रत्येक" मनुष्य के समक्ष अनेकों परिस्थितियां आती हैं, उन परिस्थितियों का प्रभाव क्या और कितना पड़ेगा, यह पूरी तरह हमारे "सोचने और समझने" के तरीके पर निर्भर करता है.
मित्रों, चीजें वही रहती हैं पर अगर "हम चाहें तो" नजरिया (Negative to Positive Attitude) सब कुछ बदल सकता है.
"आँखों में पानी, होंठो पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो.
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें,
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो."

"विचारों की ताकत" - (Power of Thought)

"सोच से भाग्य" तक की यात्रा
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किसी महापुरुष ने कहा है :-
अपने मन की "सोच" को देखो, वो "विचारों" को जन्म देते हैं,
अपने "विचारों" को देखो, वो "शब्द" बन जाते हैं,
अपने "शब्दों" को देखो, वो "कार्य" बन जाते हैं,
अपने "कार्य" को देखो, वो "आदत" बन जाती हैं,
अपनी "आदतों" को देखो, वो "चरित्र" बन जाता है,
अपने "चरित्र" को देखो, वो "भाग्य" बन जाता है."
मित्रों हमें "सोच" और "विचार" में ही असली अंतर समझना है :-
1. Case No 1 :-
(a) "सोच" - आपने article लिखने के बारे में सोचा.
(b) "विचार" - Article "Positive" लिखना है या "Negative".
(c) "शब्द" -
(i) अगर Positive Article लिखना है तो Positive शब्दों का इस्तेमाल करना होगा.
(ii) अगर Negative Article लिखना है तो Negative शब्दों का इस्तेमाल करना होगा.
(d) "कार्य" - Article लिखने की शुरुआत हो जाएगी.
(e) "आदत" - Article लिखना ही आदत बन जायेगा.
(f) "चरित्र" - लोग आपको Article लिखने वाले के रूप में जानने लगेगें.
(g) "भाग्य" - अब अगर आपके Articles famous हो गए तो लोग आपको भाग्यवान कहने लगेंगे, वर्ना लोग कहेंगे इसका भाग्य ही ख़राब था. असल में भाग्य ख़राब नहीं था, हम विचारों में कहीं भटक गए.
2. Case No 2 :-
(a) "सोच" - आपने फिल्म लाइन में जाने की सोची.
(b) "विचार" - एक्टिंग हीरो की करनी है या विलेन की.
(c) शब्द -
(i) अगर हीरो की एक्टिंग करनी है तो Positive शब्द दिमाग में आएंगे.
(ii) अगर विलेन की एक्टिंग करनी है तो Negative शब्द दिमाग में आएंगे.
(d) "कार्य" - Acting करने की शुरुआत हो जाएगी.
(e) "आदत" - Acting करना ही आदत बन जायेगा.
(f) "चरित्र" - लोग आपको Actor के रूप में जानने लगेगें.
(g) "भाग्य" - अब अगर आप एक Actor के रूप में famous हो गए तो लोग आपको भाग्यवान कहने लगेंगे, वर्ना लोग कहेंगे इसका भाग्य ही ख़राब था. असल में भाग्य ख़राब नहीं था, हम विचारों में कहीं भटक गए.
मित्रों हर किसी इंसान को इस "सोच से भाग्य" रूपी यात्रा करनी ही पड़ेगी, कोई भी इंसान इससे बच नहीं सकता.
मित्रों सोच को कोई रोक नहीं सकता,
पर, पर, पर .....
हमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण "विचारों की ताकत" को समझना होगा,
किसी भी हालत में हमें अपने विचार Negative नहीं करने हैं, ये ध्यान रहे, चाहे कितनी भी मुसीबत आ जाये.....
मित्रों हर बार Negative विचारों को एक ही जवाब देना है :-
"अगर गम के पास तलवार है, तो मैं उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..!
ऐ जिंदगी ! तेरी हर चाल के लिए मैं एक चाल लिए बैठा हूँ ..."

ताकत स्वीकार करने की .... (Power of Acceptance) ..... 

जींदगी मे कुछ पाना हो, तो तरीके बदलो..... ईरादे नही..
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1. बेटा पिता के आगे स्वीकार नहीं करता कि वो पढ़ाई में कमजोर है.
2. Employees Boss के आगे स्वीकार नहीं करता की उससे गलती हुई है.
3. बहु सास के आगे स्वीकार नहीं करती कि दाल में नमक ज्यादा पड़ गया है.
4. Student Teacher के आगे स्वीकार नहीं करता की उसकी English या Maths कमजोर है.
5. दोस्त स्वीकार नहीं करता की उसका उसकी Wife के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं हैं.
6. पति पत्नी आपस में स्वीकार नहीं करते कि गलती उनमें से किसी एक की है.
7. डर क्या है : अनिश्चितता को स्वीकार न करना.
8. ईर्ष्या, नफ़रत क्या है : दूसरों की अच्छाई को स्वीकार न करना.
9. क्रोध क्या है : दूसरे का हमारी बात को स्वीकार न करना.
10. इस तरह की न जाने कितने ही घटनाएँ स्वीकार न करने की हमारे साथ होती रहती है.
तो मित्रों जब कोई स्वीकार ही नहीं करेगा तो समाधान कहाँ से निकलेगा, वहां तो Negativity ही Negativity का निवास होगा।
मित्रों Positive Energy तब बहेगी जब कोई स्वीकार करेगा कि हाँ हमारे अंदर कमी है या हमसे गलती हुई है.
इंसान भी जिंदगी में बड़ी बड़ी समस्याओं की वजह से परेशान नहीं हैं, हम परेशान रहते हैं रोज़ रोज़ की छोटी छोटी समस्याओं की वजह से.
इन छोटी छोटी समस्याओं का समाधान तो है जिससे ये समस्याएं हमें परेशान न करें, मित्रों उसके लिए हमारे अंदर स्वीकार(Accept) करने के ताकत होनी चाहिए।
क्या हमारे अंदर इतनी ताकत है कि हम दूसरों को उसी रूप में स्वीकार करें जैसे वे हैं और उनकी गलतियों के लिए इतनी जल्दी माफ़ कर दे ”जितनी जल्दी हम उपरवाले से अपनी गलतियों के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं" ?
किसी भी moment में "Unconditional Acceptance" का मतलब है Negativity को वहीं पर "Stop करना", Problem को "महामारी न" बनने देना.
जैसे ऊपर वाले सारे Examples को एक बार फिर देखते हैं :-
1. क्या हुआ अगर कोई पढ़ाई में कमजोर है ? Concept clear न होने पर हर कोई कमजोर ही होता है. बेटे के स्वीकार करने पर दोनों पिता और पुत्र पढ़ाई का कोई नया तरीका अपनाते.
2. क्या हुआ अगर गलती हो गयी ? Employee के स्वीकार करने पर Boss भी उस employees को उसके level का काम देता और employee भी अपनी Knowledge increase करने का प्रयास करता.
3. क्या हुआ अगर खाना ख़राब बन गया ? इंसान से गलतियां होती रहती है. बहु के स्वीकार करने से सब जगह शांति हो जाती.
4. Student के स्वीकार करने पर दोनों Teacher और Student पढ़ाई का कोई नया तरीका ईजाद करते.
5. Problem solve करने के लिए दोस्त ही कोई तरीका बताता.
6. अपनी अपनी गलती मान लेने से दोनों अपनी Future planning पर ध्यान देते.
7. अगर हम अनिश्चितता को ही स्वीकार कर लें तो फिर डर काहे का.
8. जिस तरह नमक और चीनी के mixture में से चीटीं सिर्फ अपने काम की चीज चीनी उठाती है, उसी तरह दूसरे इंसान की अच्छाइयां उठाते ही उससे ईर्ष्या, नफ़रत सब ख़त्म हो जाती है. 9. दूसरे की सहनशीलता देखते ही, काहे का क्रोध।
मित्रों अपनी "गलती स्वीकार न करना एक बीमारी" है और ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें आदमी खुद तो परेशान रहता ही रहता है, उससे जुड़े दूसरे लोग भी बहुत परेशान रहते हैं. हमें जिंदगी में किसी को हराने के लिए ताकत दिखाने के बजाये, अपनी "स्वीकार करने की ताकत" दिखाते और बढ़ाते हुए अपने को निखारना ही होगा.
मित्रों ध्यान रहे जो बीत गया उस पर कभी भी पछतावा न करें क्योँकि "जब आपने वो काम किया था तब आप उसे करना चाहते थे", फिर पछतावा किस बात का. अब तो बारी है कि अगर कुछ गलत हो गया है उसको "स्वीकार करके" दुरुस्त किया जाये।
स्वीकार न करके हम अपने आस पास एक Negative Aura (प्रभामण्डल) तैयार कर लेते है और फिर जिंदगी भर उस Negative Aura से बाहर आने की ही जद्दोजहत में जिंदगी गुजार देते हैं.
हमें "Accept करने की ताकत" को समझना पड़ेगा।
अपनी गलतियों को Accept न करने का मतलब है कि अपने मोबाइल की contact memory का उन पुराने बेकार contact नंबरों से भर जाना, जिनका आज की date में कोई लेना देना नहीं है. मित्रों जब तक वो पुराने नम्बर हम delete नहीं करेंगे तब तक नए नम्बर save करने के लिए जगह नहीं बनेगी.
इसी तरह अपनी जिंदगी से भी हमें ऐसे पुराने हादसों को माफ़ी मांग कर या माफ़ करके delete करना पड़ेगा तभी हम नई खुशनुमा यादों के लिए जगह बना पाएंगे क्योँकि पुरानी गलतफमियों को अभी तक हमने "स्वीकार न" करके संभाल कर रखा है. हमें उन पुरानी गलतफमियों को "स्वीकार कर" उन्हें delete करके Positivity के Aura में कदम रखना ही होगा.
शंकर शलेन्द्रे जी की ये पंक्तियाँ जरा गुनगुनाने की कोशिश करें :-
तू जिन्दा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो.... उतार ला जमीन पर.
ये गम के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जायेंगे गुजर, गुजर गए हजार दिन.
कभी तो होगी इस चमन.... पे बहार की नज़र.
अगर कहीं है स्वर्ग तो.... उतार ला जमीन पर.
अगर कहीं है स्वर्ग तो.... उतार ला जमीन पर.
मित्रों, अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो,,, तरीके बदलो....., ईरादे नही..

                                                ...........Train Your Mind Naturally .........
1. बुजुर्ग असल में हमारे बुजुर्ग ही नहीं, हमारे "Mind Trainer" होते हैं, जो धीरे धीरे हमें Adverse situation से निपटने की Training देते रहते हैं, जिसका ऋण हम इंसान मरते दम तक नहीं चुका सकते.
2. समस्याओं में हमेशा अपने से ज्यादा वाले की समस्या के बारे में सोचोगे तो अपनी समस्याएं बहुत ही छोटी नज़र आएगी.
3. "दूसरों की गलतियों से सीखो, हर चीज अपने ही ऊपर प्रयोग करके सिखने को हमारी आयु कम पड़ेगी"
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मेरे दादाजी 80 साल के हैं उन्होंने कब और कैसे मुझे जीवन की सच्चाइयों की Mind Training दी मुझे पता ही नहीं चला. मित्रों जीवन में बुजुर्गों का साथ बहुत जरुरी है क्योँकि उनके द्वारा दी गयी Mind Training, आचार्य चाणक्य के इस कथन को सत्य करती है कि "दूसरों की गलतियों से सीखो, हर चीज अपने ही ऊपर प्रयोग करके सिखने को हमारी आयु कम पड़ेगी".
मेरे हमेशा जिद करने पर कि मुझे नए जूते, कपड़े दिलवाइए, कुछ अच्छा खिलवाइये, अच्छे से अच्छे स्कूल में डलवाइये, एक दिन दादाजी मुझे घुमाते हुए जुग्गी झोपड़े की तरफ से ले गए.
जुग्गी में रहने वालों को देख कर मैंने दादाजी से पूछा :- ये लोग कौन हैं, ये लोग यहाँ क्योँ रहते हैं, इन्होने अच्छे कपडे क्योँ नहीं पहन रखे हैं, ये नंगे पैर क्योँ हैं, इतनी सर्दी में इन्होने स्वेटर क्योँ नहीं पहन रखी है, बरसातों में ये लोग कहाँ रहते हैं.
मेरे एक साथ इतने प्रश्नों के लिए वो तैयार थे, उन्होंने कहा :- " बेटा देश में अभी बहुत गरीबी है, मेहनत, मजदूरी करके ये लोग जो कुछ कमा लेते है उससे सिर्फ इनके खाने का ही इंतजाम हो पाता हैं और कई बार तो इन्हें भूखा भी रहना पड़ता है. पढ़ने, मकान, नए जूते, नए कपड़े की बात तो तुम छोड़ ही दो. गर्मी, बरसात, सर्दी ये कैसे झेलते होंगे, इस बात की कल्पना मात्र से ही आदमी कांपने लगता है.
सार : मित्रों उस दिन मुझे समझ आया की हम तो कितनी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं, उसके बाद हर चीज के लिए जिद करने की मेरी आदत भी खत्म हो गयी. पर आज मैं सोचता हूँ कि शायद दादाजी बिना बोले मेरी Mind Training कर रहे थे, कि जिंदगी में इंसान के साथ अगर ऐसा हो या सब कुछ खत्म हो जाने पर भी जीने की आस नहीं छोड़नी चाहिए क्योँकि अगर कुछ भी होने की हमारी आस बंधी रह सकती है तो वो जिन्दा रह कर, हमारे जाने के बाद कुछ नहीं होने वाला.
"मित्रों समस्याओं में हमेशा अपने से ज्यादा वाले की समस्या के बारे में सोचोगे तो अपनी समस्याएं बहुत ही छोटी नज़र आएगी."
कुछ साल बाद मेरा अपने रिस्तेदार के साथ Property का झगड़ा हो गया तो मैंने दादाजी से कहा की मुझे तो इनपर कोर्ट केस करना है, उन्होंने मुझे बहुत समझाया की बातचीत से समझौता कर ले, कोर्ट के चक्कर में मत पड़. मेरे बहुत जिद करने पर वो किसी बहाने मुझे कोर्ट ले गए, पर जब मैं उनके साथ कोर्ट गया और वहां आये हुए लोगों के cases के बारे में सुना कि उनके 20-20 साल से case चल रहे है तो ऐसा लगा की 1-2 पीढियां तो कोर्ट केस में ही गुजर जाएँगी. वहां कोर्ट में किसी के तलाक के केस, किसी के Property के केस, जो न सोचो वो कम.
हमारी एक दूसरे के सामने न झुकने की आदत से कभी कभी छोटी छोटी बातें इतनी बड़ जाती है की कई बार तो कई पीढियां कोर्ट का चक्कर लगाते लगाते ही गुजर जाती हैं. उस वक़्त ऐसा लगा की हमारा झगड़ा तो कुछ भी नहीं है और मैंने अपना झगड़ा बातों से ही सुलझा लिया, इस सोच के साथ कि :- जिंदगी में कभी किसी से माफ़ी मांग लो या कभी किसी को माफ़ कर दो.
"मित्रों समस्याओं में हमेशा अपने से ज्यादा वाले की समस्या के बारे में सोचोगे तो अपनी समस्याएं बहुत ही छोटी नज़र आएगी."
एक बार गिरने की वजह से मेरा सीधा हाथ टूट गया. मैंने पुरे घर में हंगामा कर दिया कि अब मेरे जीने का क्या फायदा जब मैं कुछ काम ही नहीं कर सकता, किसी को कुछ पता भी है की अब मैं जिंदगी भर ठीक से काम भी नहीं कर पाउंगा.
तब दादाजी एक दिन मुझे सरकारी अस्पताल ले कर गए. जब मैंने वहां लोगों की बिमारियों के बारे में देखा और सुना तो मेरे होश उड़ गए. उस वक़्त ऐसा लगा की शायद मेरे हाथ टूटने की problem तो इन बिमारियों के सामने कुछ भी नहीं है.
"मित्रों समस्याओं में हमेशा अपने से ज्यादा वाले की समस्या के बारे में सोचोगे तो अपनी समस्याएं बहुत ही छोटी नज़र आएगी."
जब मैंने कुछ Property खरीद ली तो मुझे कुछ घमंड हो गया तो ये बात दादाजी को पता चल गयी. तो एक दिन उन्होंने मेरे सामने पुरे विश्व का नक्शा रख दिया और बोले जरा बताना कहाँ कहाँ पर है तेरी property. बस उस दिन ऐसा लगा की इंसान जबरदस्ती हवा में उड़ता फिरता है, जबकि है सिर्फ शून्य के बराबर.
"मित्रों जब कभी अपनी Property पर घमंड हो तो विश्व का नक्शा उठा कर अपनी property ढूंढने की कोशिश करना शायद नज़र भी नहीं आएगी."
एक दिन मुझे अपनी पढ़ाई पर घमंड हो गया. तो दादाजी ने सिर्फ एक प्रश्न पूछा : जरा बताना आज तक कितनों को free में पढ़ाया है तूने.
मित्रों मान कर चलिए मेरी आँखे शर्म के मारे झुकी की झुकी रह गई जब उन्होंने कहा कि "क्या फायदा ऐसी पढ़ाई का जो सिर्फ अपने काम आये, दूसरों के नहीं".
मित्रों मेरे दादाजी सिर्फ दादाजी नहीं मेरे मार्गदर्शक हैं और मैं तो ये कहूँगा की हम सभी के दादा, दादी या दूसरे सभी बुजुर्ग लोग हमारे मार्गदर्शक हैं, "अगर हम इस बात को समझे और अपने बच्चों को अपने बुजुर्गों के साथ वक़्त गुजारने का समय दें."
Property, बैंक बैलेंस, Knowledge सब अच्छी बात है, हमने मेहनत की है जिसका हमें रिजल्ट मिला, पर घमंड करके हम उसकी बेइज्जती न करें, अपने आप को दुनिया के सामने निचा न दिखाएँ.
मित्रों बुजुर्ग असल में हमारे बुजुर्ग ही नहीं, हमारे "Mind Trainer" होते हैं, जो धीरे धीरे हमें Adverse situation से निपटने की Training देते रहते हैं, जिसका ऋण हम इंसान मरते दम तक नहीं चूका सकते.

                                                 ‘‘जाओ मैं आपकी गालियां नहीं लेता।"
आपके द्वारा गालियां देने से क्या होता है। जब तक मैं गालियां स्वीकार नहीं करता इसका कोई परिणाम नहीं होगा।
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गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी
एक बार गौतम बुद्ध किसी गांव से गुजर रहे थे। उस गांव के लोगों की गौतम बुद्ध के बारे में गलत धारणा थी जिस कारण वे बुद्ध को अपना दुश्मन मानते थे। जब गौतम बुद्ध गांव में आए तो गांव वालों ने बुद्ध को भला-बुरा कहा और बददुआएं देने लगे। गौतम बुद्ध गांव वालों की बातें शांति से सुनते रहे और जब गांव वाले बोलते-बोलते थक गए तो बुद्ध ने कहा, ‘‘अगर आप सभी की बातें समाप्त हो गई हों तो मैं प्रस्थान करूं।’’
बुद्ध की बात सुन कर गांव वालों को आश्चर्य हुआ। उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘हमने तुम्हारी तारीफ नहीं की है। हम तुम्हें बददुआएं दे रहे हैं। क्या तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता?’’
बुद्ध ने कहा, ‘‘जाओ मैं आपकी गालियां नहीं लेता। आपके द्वारा गालियां देने से क्या होता है। जब तक मैं गालियां स्वीकार नहीं करता इसका कोई परिणाम नहीं होगा। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति ने मुझे कुछ उपहार दिया था लेकिन मैंने उस उपहार को लेने से मना कर दिया तो वह व्यक्ति उपहार को वापस ले गया। जब मैं लूंगा ही नहीं तो कोई मुझे कैसे दे पाएगा।’’
बुद्ध ने बड़ी विनम्रता से पूछा, ‘‘अगर मैंने उपहार नहीं लिया तो उपहार देने वाले व्यक्ति ने क्या किया होगा।’’
भीड़ में से किसी ने कहा, ‘‘उस उपहार को व्यक्ति ने अपने पास रख लिया होगा।’’
बुद्ध ने कहा, ‘‘मुझे आप सब पर बड़ी दया आती है क्योंकि मैं आपकी इन गालियों को लेने में असमर्थ हूं और इसीलिए आपकी ये गालियां आपके पास ही रह गई हैं।’’
भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की यह छोटी-सी कहानी हमारे जीवन में एक बड़ा बदलाव ला सकती है क्योंकि हम में से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण दूसरे व्यक्ति हैं।
हमारी परेशानियों या दुखों की वजह कोई अन्य व्यक्ति नहीं हो सकता और अगर हम ऐसा मानते हैं कि हमारी परेशानियों की वजह कोई अन्य व्यक्ति है तो हम अपनी स्वयं पर नियंत्रण की कमी एवं भावनात्मक अक्षमता को अनदेखा करते हैं।
यह हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गई नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं तो हम स्वयं के पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं।

"क्या सही है" यानि "विचार" या "कौन सही है" यानि "मैं" को हम खुद ही न समझ पाएं तो हमारा यह ज्ञान और गुण दोनों व्यर्थ हैं......
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एक बार एक टीचर अपने छह (6) छात्रों को आँख में पट्टी बांधकर बिना बताए हाथी के पास ले गए और सबसे पूछा कि हाथ लगा कर बताओ कि ये किसके जैसा लगता है. सभी छात्रों के उत्तर इस प्रकार रहे :-
- पहले ने हाथी के पेट को छू कर बोला की ये तो एक दीवार जैसा है.
- दूसरे ने हाथी के दांत छू कर बोला कि ये तो कोई भाले जैसा है.
- तीसरे ने हाथी के पैर छू कर बोला कि ये तो कोई खम्बे जैसा है.
- चौथे ने हाथी की सूंड पकड़ कर बोला कि ये तो कोई बड़े सांप जैसा है.
- पांचवे ने हाथी की पूँछ छू कर कहा कि ये तो कोई मोटी रस्सी के जैसा है.
- छठे ने हाथी के कान छुए और कहा ये तो एक बड़े पंखे के जैसा है.
(मित्रों कहानी में थोड़ी गलती हो सकती है, Please आप लोग कहानी के भाव को समझना).

मित्रों विचारों की भिन्नता (Difference of Opinion) अच्छी बात है पर हमें इस बात पर लड़ाई नहीं करनी चाहिए की हर कोई किसी भी चीज को अलग अलग नजरिये से क्यों देखता है, क्योँ उसने मेरी बात नहीं मानी.
किसी भी चीज पर विचार-विमर्श (Discussion) करना बहस (Argument) करने से ज्यादा अच्छा है क्योँकि :-
(a) विचार-विमर्श करने से निकलता है - "क्या सही है", इसमें "विचारों" की जीत होती है, जिसे हम जिंदगी की जीत भी कहते है और
(b) बहस करने से निकलता है - "कौन सही है", इसमें "मैं" की जीत होती है, जिसे हम घमंड, अहंकार (Ego) की जीत कहते हैं.
मित्रों फर्क सिर्फ "क्या सही है" या "कौन सही है" का नहीं है, क्योँकि जहाँ "विचारों" की जीत से इंसान का बड़प्पन झलकता है वहीँ "मैं" की जीत से हम इंसान अपने को दूसरों की नज़रों में गिरा देते हैं, जो कि आज की तारीख में लड़ाई झगडे की भी मूल वजहों में से एक है.
आज की तारीख में आप अभी "किसी भी रिश्ते, चाहे खून के रिश्ते हों या दोस्ती के या ऑफिस के या कोई और", ध्यान से सोचिये और देखिये कि जहाँ पर भी हमने दूसरे के "विचारों" को आदर दिया, (चाहे Knowledge होने की वजह से बाद में दूसरे व्यक्ति ने हमारी ही बात मान ली क्योँकि उसने भी हमारी बात को आदर दिया) वो रिश्ते बहुत अच्छे चल रहे है और जहाँ पर भी हमने "मैं"(अहम) को तवज्जो दी, उन रिश्तों में ज्यादातर समय खटास ही बनी रहती है.
इसलिए मित्रों अपनी जिंदगी में हमेशा "विचारों" को ज्यादा महत्व दीजिये बजाये की "मैं" को.
मित्रों इसलिए हमें यहाँ पर स्वाभिमान और अभिमान को भी समझना पड़ेगा :-
(a) स्वाभिमान (Self Respect) मतलब अपनी प्रतिष्ठा, गौरव, इज्जत का ख्याल और
(b) अभिमान मतलब घमंड, अहंकार (Ego).
अभिमान में "मैं का आतंक होता है". यह ‘मैं’ हमें हमेशा औरों से दूर करता है.
हमारे अंदर ज्ञान, गुण होना स्वाभिमान की बात है पर उन्ही ज्ञान, गुणों पर अभिमान (घमंड) हमें गलत दिशा में ले जाता है.
इन्ही ज्ञान और गुणों को आगे बाँटने के बजाये हम विचार-विमर्श (Discussion) न कर, बहस (Argument) करके अपने को ऊँचा और दूसरों को निचा दिखाएँ और "कौन सही है" या "क्या सही है" को खुद ही न समझ पाएं, तो हमारा यह ज्ञान और गुण दोनों व्यर्थ हैं.
मित्रों स्वाभिमानी होना गर्व की बात है पर हमें अपने ज्ञान और गुणों पर कभी भी अभिमान न हो, यही हमें कामना करनी चाहिए, क्योँकि जहां स्वाभिमान हमें एक दूसरे से जोड़ता है वहीँ अभिमान हमें एक दूसरे से बहुत दूर ले जाता है........

असफलता का डर (Fear of Failure).
क्या जरुरत है ये सोचने की :-"कहीं ऐसा न हो जाये",
क्योँ न आज से ये सोचें :- "ज्यादा से ज्यादा क्या होगा".
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मित्रों पहले समझते हैं डर को और इसके दुष्परिणाम को, इस डर ने हमें कितना खोखला बना दिया है, देखते हैं ......
1) हमें तैरने में डर लगता है, कहीं डूब न जाएँ - इसलिए आजतक हमें तैरना नहीं आया.
2) हमें पढ़ाई से डर लगता है, कहीं fail न हो जाएँ - इसलिए आजतक हम अच्छे student नहीं बन पाये.
3) हमें office में नये तरीके को आजमाने में डर लगता है, कहीं Boss नाराज न हो जाए - इसलिए हम बहुत अच्छे employee नहीं बन पाए.
4) हमें कार, स्कूटर चलाने में डर लगता है, कहीं accident न हो जाए - इसलिए हमें आजतक कार, स्कूटर चलानी नहीं आई.
5) हमें स्कूल, कॉलेज, ऑफिस के function में stage में आने में डर लगता है, कहीं लोग मजाक न उड़ाएं - इसलिए आजतक हर function में हम छिप कर बैठते हैं.
6) हमें खाना बनाने या खाने में नया experiment करने में डर लगता है, कहीं ख़राब बन गया तो घरवाले क्या कहेंगे - इसलिए आजतक हमने खाने में कुछ नया नहीं सीखा.
7) हमें competitive exam देने में डर लगता है, कहीं fail हो गए तो लोग क्या कहेंगे - इसलिए आजतक अच्छी नौकरी की तलाश कर रहे हैं.
8) कोई नया काम या business करने में डर लगता है, कहीं पैसा डूब गया तो - इसलिए आजतक सारे business plan दिमाग में ही धक्के खा रहे हैं.
9) किसी भी काम में risk लेने का डर, कहीं काम ख़राब हो गया तो मेरे पीछे मेरे बीबी, बच्चों का क्या होगा - इसलिए आजतक कभी risk ही नहीं लिया.
10) हम खेलेंगे नहीं या अपने बच्चे को खेलने नहीं भेजेंगे, क्योँकि कहीं चोट न लग जाये - इसलिए न खुद और न हमारा बच्चा अच्छे खिलाडी हैं.
11) मित्रों इसी तरह के हजारों प्रश्न हमारे दिमाग में चलते रहते हैं ......
सार :- मित्रों इस डर की वजह से अपनी जिंदगी में "अपने सोचे हुए काम न कर पाना जन्म देता है - अपने अंदर धीरे धीरे उठते हुए तूफान को", जो एक दिन निराशा (frustration) में तब्दील हो जाता है, जिससे आगे चलकर हम चीड़-चिड़े हो जाते हैं और धीरे धीरे हर किसी से अपने को काटने की कोशिस करते है और कई बार तो हम Depression में भी चले जाते हैं.
मित्रों अब ऊपर वाले examples में सबसे पहले मन में सोचिये कि सबसे ज्यादा बुरा क्या होगा.
हम ये सोचने की जगह कि " कहीं ऐसा न हो जाये", अगर हम ये सोचेंगे कि "ज्यादा से ज्यादा क्या होगा" तो मानिये मित्रों हम कभी भी निराश नहीं होंगे, देखते है कैसे :-
1) ज्यादा से ज्यादा हम वाकई डूब जायेंगे.
2) ज्यादा से ज्यादा हम वाकई क्लास में fail हो जायेंगे.
3) ज्यादा से ज्यादा Boss हमें नौकरी से निकाल देगा.
4) ज्यादा से ज्यादा हमारा सही में accident हो जायेगा.
5) ज्यादा से ज्यादा लोग हमारा मजाक ही तो उड़ाएंगे.
6) ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे बनाये खाने की बुराई ही तो करेंगे.
7) ज्यादा से ज्यादा हम Competitive exam में fail हो जायेंगे.
8) ज्यादा से ज्यादा हमारा सारा पैसा डूब जायेगा.
9) क्या कभी हमारे परदादा ने risk नहीं लिया, उन्होंने अगर कभी Risk लिया तो क्या पूरा खानदान खत्म हो गया, नहीं न .....
10) ज्यादा से ज्यादा हमें चोट ही तो लगेगी.
सार :- मित्रों ज्यादा से ज्यादा सोच लेने से कोई ज्यादा से ज्यादा थोड़े ही हो जाता है, पर हमारे अंदर का डर खत्म हो जाता है क्योँकि हम ज्यादा से ज्यादा worst के लिए तैयार हो जाते हैं और उस काम को करने की शुरुआत हो जाती है. बस मित्रों पहले कदम ही की तो जरुरत है जिंदगी चलाने के लिए..हमें सिर्फ और सिर्फ अपने सोचने के अंदाज को बदलना है, फिर देखिये हमारी जिंदगी कैसे चमत्कार करती है.
मित्रों आज 12 जनवरी, स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन, National Youth Day भी है.
अपना भारत देश बहुत ही युवा देश है. हमारी 65% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और आजकल कम उम्र के बच्चों में depression वाली बहुत समस्याएँ सुनने को मिलती हैं, इसलिए हमें चाहिए कि हम लोग मिलकर हमेशा उनकी हौसला अफजाई करते रहें, क्योँकि इसी युवा पीढ़ी ने अपने भारत को एक नयी ऊंचाइयों तक ले कर जाना है, बुजुर्गों के आशीर्वाद और Experience के साथ साथ.
विवेकानंद जी ने भी कहा था :-
Stand Up, Be Bold, Be Strong ......
Strength is Life, Weakness is Death.
मित्रों क्या जरुरत है ये सोचने की :-
"कहीं ऐसा न हो जाये",
क्योँ न आज से ये सोचें :-
"ज्यादा से ज्यादा क्या होगा".

इस संसार का सबसे बड़ा अपराध है - कमजोर रहना.
सर्वोतकृष्टता (Best) के अलावा और कोई भी विकल्प स्वीकार्य नहीं होना चाहिए.....
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मित्रों जिंदगी में :-
"काम ऐसा करो की नाम हो जाये ..
और
नाम ऐसा करो, कि नाम लेते ही काम हो जाये."
मित्रों दुनिया हर चीज का मतलब अलग अलग तरीके से लेती है,इसे समझते हैं :-
अगर कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत करता है तो लोग कहते हैं पैसों के लिए मरा जा रहा है.
पैसा खर्च करे तो फिजूलखर्च कहा जाता है.
पैसा खर्च न करो तो - बड़ा कंजूस मक्खीचूस है.
आप के पास पैसा हो तो कहेंगे दो नम्बर का होगा.
अगर पैसा कम है तो कहेंगे - सूझबूझ होती तो यह हालत न होती.
जिंदगी भर मेहनत से जमा किये गए पैसे के बारे में कहा जाता है - बेवक़ूफ़ है पैसे का सुख नहीं भोग तो कमाया क्योँ था.
सार : मित्रों इन ऊपर वाली बातों को Negative लेने की जरुरत नहीं है, इसे हम विचारों की भिन्नता कहते है, हमें अपने ऊपर Confidence रखते हुए आगे बढ़ना है, बिना किसी की बातों का बुरा मानते हुए.
"खुदी को कर बुलंद इतना,
कि हर तक़दीर से पहले खुदा बन्दे से ये पूछे,
बता तेरी रज़ा क्या है."
अपने अंदर Confidence (आत्मविश्वास) कब और कैसे आता है, उसको लाने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है:-
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान.
मतलब, बार-बार एक ही काम को कर, उसमें निपुण होने का प्रयास ही अभ्यास है (Practice Makes Man Perfect) और फिर उसी से confidence आता है .
कुछ example लेते है :-
1) हमारी माताओं के लिए रोटी बनाना कोई मुश्किल काम नहीं, पर हमारे लिए......
2) हमारे लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल चलना बहुत आसान है, पर जिसको नहीं आती, उनके लिए .....
3) तेंदुलकर के लिए बैटिंग कोई मुश्किल नहीं पर, पर हमारे लिए .....
4) अमिताभ बच्चन जी के लिए अभिनय कोई मुश्किल नहीं, पर हमारे लिए......
5) नेताओं के लिए stage पर भाषण देना कोई मुश्किल नहीं, पर हमारे लिए......
6) TV न्यूज़ रीडर्स को न्यूज़ पढ़ने में कोई Problem नहीं होती, पर हमारे लिए .....
7) पाइलट के लिए हवाई जहाज चलाना कोई मुश्किल नहीं, पर हमारे लिए .....
8) टीचर के लिए क्लास में पढाना कोई मुश्किल नहीं, पर हमारे लिए .....
9) TV सीरियल में कलाकारों के लिए एक्टिंग करना बहुत आसान है, पर हमारे लिए .....
10) इसी तरह के लाखों example हैं ......
मित्रों हमें इन सबके पीछे का सबसे पहले मतलब समझना पड़ेगा.
Confidence (आत्मविश्वास) को हमें 3 step में समझना होगा :-
A) सबसे पहले जो भी कुछ जिंदगी में करना है, हमें उसके प्रति Positive नजरिया (Attitude) रखना होगा.
B) फिर उसके बाद लगातार अभ्यास (Practice) करना होगा.
C) पर Practice करनी है अनुशासन (Discipline) के साथ.
Confidence = A + B + C
आत्मविश्वास = नजरिया + अभ्यास + अनुशासन
मित्रों मान कर चलिए इन तीनों में से एक भी चीज अगर नहीं हुई तो आपके अंदर Confidence नहीं आएगा.
चलिए देखते है :-
ऊपर वाले 10 Examples में से अगर Attitude और Discipline हटा दो तो क्या होगा :-
1) रोटियां अच्छी नहीं बनेंगी.
2) हमें स्कूटर, मोटरसाइकिल चलाना नहीं आएगा.
3) तेंदुलकर अच्छी बैटिंग नहीं कर पायेगा.
4) अमिताभ जी अच्छी एक्टिंग नहीं कर पाएंगे.
5) नेता स्टेज पर अच्छा भाषण नहीं दे पाएंगे.
6) TV न्यूज़ रीडर्स अच्छी तरह न्यूज़ नहीं पढ़ पाएंगे.
7) पाइलट अच्छी तरह हवाई जहाज नहीं चला पाएंगे.
8) टीचर क्लास में अच्छा नहीं पढ़ा पाएंगे.
9) TV सीरियल कलाकार अच्छी एक्टिंग नहीं कर पाएंगे.
मित्रों हमें छोटे से छोटे काम करने के लिए अपने इस फॉर्मूले को use करना हैं, तभी Confidence आएगा :-
Confidence = Attitude + Practice + Discipline
JRD TATA जी ने कहा था :-
"हमें हमेशा उत्कृष्टता (Better) और उसी प्रकार परिपूर्णता (Completeness) के लिए प्रयास करना चाहिए, चाहे काम कितना ही छोटा क्योँ न हो. सर्वोतकृष्टता (Best) के अलावा और कोई भी विकल्प स्वीकार्य नहीं होना चाहिए."
मित्रों चाहे अपने जूते पोलिश करनी हो पर JRD TATA वाला वाक्य ध्यान में रहे क्योँकि "जब हम छोटे छोटे काम Perfection के साथ करेंगे तो एक दिन बड़ा काम भी Perfection और Confidence के साथ कर जायेंगे, इसमें कोई शक नहीं."
मित्रों रोज़ अपने को थोड़ा थोड़ा निखारते जाएँ जिससे हमारा Confidence समुन्दर बन जाएँ और फिर एक दिन दुनिया कहे :-
दरिया ही गिरा करते हैं समंदर में,
समंदर जाके किसी दरिया में नहीं गिरता.

ताकत सिर्फ और सिर्फ "1(एक)" की - Power of "One"
"1-1" काम इतनी ख़ामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे, ध्यान रहे जिसने अपनी जिंदगी में जूनून के साथ काम नहीं किया, इतिहास ने उसका नाम कभी नहीं लिया ....
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मित्रों हमें अंदाजा नहीं है अपनी अकेले "1" की ताकत का.
जरा सोचें, समझे और विचार करें की हम "1-1" इंसान आग हैं आग. आग मतलब जुनूनी. हमें जूनून रूपी इस आग को कभी भी बुझने नहीं देना है.
इतनी ताकत है हम "1" इंसान में कि हम दुनिया का कोई भी काम कर सकते हैं और उसको बदल सकते हैं.
ध्यान रहे :-
भरोसा अपने "1" पर रखो तो ताकत बन जाती है,
और
दूसरों पर रखो तो कमजोरी बन जाती है…
अब गहराई में समझते हैं "1" की ताकत को :-
* "1" छण में इतनी ताकत है कि वो इतिहास बना सकती है, जैसे :-
15 अगस्त 1947 हमारे भारत की आजादी का ऐतिहासिक छण...
* "1" छोटे से बच्चे की किलकारी पूरी उदासी खत्म कर देती है.
* "1" विचार (idea) में इतनी ताकत है कि वो करोड़ो लोगो को प्रेरित कर सकता है.
if 1 idea can change a room, then it can change a city.
If it can change a city, then it can change a state.
If it can change a state, then it can change a nation.
If it can change a nation, then it can change the World.
मित्रों कुछ ऐसा काम कर के जाएँ जिससे हमारी आगे आने वाली पीढ़ी सदियों तक Inspire होती रहे, जैसे इन लोगों ने किया :-
स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध, रबिन्द्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी, चाणक्य, सुभाष चंद बोस, भगत सिंह, मदर टेरेसा, नेल्सन मंडेला, अब्दुल कलाम इत्यादि।
* "1" मोमबत्ती ही बहुत है अँधेरे कमरे में उजाला करने के लिए.
* "1" इंसान में इतनी ताकत होती है कि वो पुरे देश को बदल सकता है, जैसे :-
Lee Kuan Yew - सिंगापूर के पहले प्रधानमंत्री, जिन्होंने सिंगापुर को "Third World से First World " में तब्दील कर दिया।
* "1" वंदना/ गाना काफी है हमारी अंतरात्मा/ देशभक्ति जगाने के लिए.
* "1-1" पेड़ लगा कर पूरा का पूरा वन ही विकसित किया जा सकता है, जैसे :-
Jadav "Molai" Payeng ने किया.
* "1" उम्मीद हमारा पूरा भाव बदल देती है, जैसे :-
दशरथ मांझी, "Mountain Man" जिन्होंने अकेले ही पूरा का पूरा पहाड़ खोदकर सड़क बना दी.
* "1" Motivator ही बहुत है हमारी जिंदगी बदलने के लिए.
जिंदगी में 10 और 100 लोग नहीं चाहिए हमें जागने के लिए,
बस एक ही काफी है हमें हिलाने के लिए.
* "1-1" वोट का महत्व है देश बदलने के लिए.
* "1" छोटे से पल में महान और अद्भुत कार्य शुरू हो जाते हैं.
"सोच को अपनी ले जाओ शिखर तक कि उसके आगे सारे सितारे झुक जाएँ,
न बनाओ अपने सफर को किसी कश्ती का मोहताज़,
चलो इस शान से कि तूफ़ान भी झुक जाएँ."
* "1" समय का खाना बहुत है जिन्दा रहने के लिए.
* "1" स्पर्श डॉक्टर का बहुत है हमें बीमारी से ठीक करने के लिए.
* "1" नई धारणा, "1" नई सोच, "1" कर्म आत्मसमर्पण के लिए, "1" परिवर्तन दिल में, "1" छलांग विश्वास की,
मित्रों, मानिये हमारी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी.
"ज़िन्दगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों किया जाये!
शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं की मर मर के जिया जाये."
* "1" ही आदमी का किसी चीज को करना ज्यादा बड़ा है, उन 99 लोगों से, जो सिर्फ बातें करते हैं.
* "1" आखिरी कोशिश कोई भी काम छोड़ने से पहले बहुत है, जैसे :-
थॉमस एडिशन सफल होने से पहले 1000 बार असफल हुए थे.
* "1" शब्द जिंदगी में मकसद बना देता है. जैसे :- Discipline, Attitude, Aim, Target, Dream.
* मैं केवल "1" हूँ, पर मैं सब कुछ नहीं कर सकता,
लेकिन फिर भी मैं "कुछ" कर सकता हूँ,
और क्योंकि मैं "सब कुछ नहीं" कर सकता,
पर मैं "कुछ" करने के लिए मना नहीं कर सकता.
सार : मित्रों न हमें सब कुछ करना है और न ही हम सब कुछ कर सकते हैं, पर हम "हर दिन, जी हाँ हर दिन" रात को सोने से पहले "सिर्फ एक इंसान" (अपने घर के अलावा) की मदद तो कर सकते हैं, चाहे कुछ भी हो जाये, मदद करने को हमें अपनी आदत बनाना होगा, जैसे ऑफिस, कॉलेज जाते समय "1" बिस्कुट या नमकीन का पैकेट दे कर किसी की मदद करना, किसी "1" का career guidance कर देना इत्यादि. मित्रों मान कर चलिए मदद करने के बाद जो सुकून और Positive Energy आप के अंदर बहेगी, आप उसका अंदाज़ा नहीं लगा सकते.
हम इंसानों की कमी है हम सोचते है कि या तो "हम बहुत बड़ा काम करेंगे" या "बिलकुल नहीं करेंगे". यहीं पर मात खा जाते हैं हम. मित्रों इस Article का शीर्षक आपने पढ़ा ही होगा " ताकत एक की (Power of One)".
* "1-1" कदम चलकर ही हम दुनिया का कोई भी काम कर जायेंगे.
जैसे "1-1" करके "Self Motivation" के page like 1 लाख 59 हजार पार कर गया है और पाठकों की संख्या तो करोड़ों में है. आप का उत्साह ही प्रेरित करता है हमें और लिखने के लिए, धन्यवाद आप सभी का.
मित्रों जिंदगी भी "1" है, कुछ अपने देश, समाज, परिवार के लिए ऐसा कर जाएँ की इंतिहास में हमारा नाम दर्ज हो क्योँकि सुना है :-
जिसने अपनी जिंदगी में जूनून के साथ काम नहीं किया,
इतिहास ने उसका नाम कभी नहीं लिया,
विश्वास नहीं है तो सोच के देख लो.
मित्रों हम इंसान नहीं, जूनून रूपी आग हैं आग, ध्यान रहे .......

अपने सपनों, आदतों को Automatic Continuous Revision Technique से जोड़िये, जो आपको अपने को निखारने की रोज़ याद दिलाता रहेगा क्योँकि हर चीज हमें कुछ न कुछ सिखाती है और जिस तरह पेड़ अपनी जड़ें नहीं छोड़ता उसी तरह हम कितने भी बड़े आदमी बन जाएँ पर अपने परिवार और अपने देश को न भूलें
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मित्रों होता यह है कि हम Dreams, Success का ज्ञान तो जगह जगह से लेते रहते हैं पर उसको बहुत जल्दी भूल जाते हैं. एक Research के अनुसार हम आज जो भी पढ़ते है उसका 72% अगले दिन ही भूल जाते हैं और 1 हफ्ते के बाद तो समझिए लगभग कुछ भी याद नहीं रहता. जब मैं अपना Professional Course कर रहा था तो किसी ने मुझे यह Technique सिखाई थी, जो मुझे लगता है हमें निखारने में रामबाण सिद्ध हो सकती है।
मित्रों कोई भी इंसान, जानवर या चीज पूरी की पूरी अच्छी या पूरी की पूरी ख़राब नहीं हो सकती और फिर जब भगवान ने इस श्रिस्टी की रचना की है तो कुछ न कुछ गुण तो सबके अंदर डाले ही हैं और हर चीज हमें कुछ न कुछ सिखाती है, ध्यान रहे जब भी हम उस चीज को TV या Live देखें तो हमें उसकी अच्छाइयां याद आ जानी चाहिए, सिर्फ अच्छाइयां (Positive Qualities only). This is called Automatic Continuous Revision Technique with "Attach your Dreams and Habits with Something".
एक एक करके देखते हैं :-
1. शेर : जैसे सिंह अपने छोटे से छोटे या बड़े से बड़े शिकार के लिए पूरा दम लगा देता है वैसे ही हमें अपने कोई भी छोटे या बड़े काम के लिए पूरा दम लगा देना चाहिए, तभी किसी भी काम में सफलता मिलेगी.
2. नदी :
बाधाओं के चारों ओर जाना, बहाव के साथ विचारशील होना, बहते रहना यानि वर्तमान में रहना, प्रकृति में विसर्जित होकर सुंदरता यात्रा करने में है न की ठहराव में.
"If you can't fly then run,
If you can't run then walk,
If you can't walk then crawl,
But whatever you do,
you have to keep moving forward."
3. कुत्ता :
बहुत खाने की शक्ति होने के बावजूद न मिलने पर थोड़े में ही संतोष कर लेना चाहिए, गहरी नींद में सोना चाहिये पर थोड़ी सी आहट से ही जाग जाने की Practice करनी चाहिए, स्वामी भक्ति, अपने मित्रों से ऐसे मिलें जैसे वे दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं,अपने परिवार की रक्षा करना.
4. समुद्र :
जितना भी बड़ा होता है रहता अपनी हद में है पर अगर ज्यादा परेशान (Global Warming) करोगे तो सुनामी लाने में भी देर नहीं करेगा.
सार : हम इंसान भी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ेंगे पर बार बार परेशान करने पर छोड़ेगे भी नहीं.
5. गधा :
बहुत थक जाने पर भी भार को ढोते रहना, सर्दी गर्मी की परवाह न करते हुए भी काम करते रहना, सदा संतुस्ट होकर विचरना तथा सहनशीलता के साथ जीवन व्यतीत करना.
6. घोड़ा :
जिंदगी की बाधाओं को छलाँग लगाते हुए पूरा करें, अपनी लगाम को situation के हिसाब से ढीला और कसते रहना, जब दोस्तों को आपकी जरुरत हो उसके लिए पूरी जान लगा देना.
7. प्रकृति (Nature) :
पानी के पास समय बिताना, रंगीन रहना, अपने सपनो को zoom करते रहना, हर मिनट, हर दिन, हर महीने, हर साल की सराहना करना, अपनी आँखें खुली रखना.
8. मुर्गा :
हमें मुर्गे की तरह सूर्योदय से पूर्व ठीक समय पर जागना चाहिए और अपने बंधुओं को उनका हिस्सा देना चाहिए.
9. पंखा :
कोई भी काम करो धीरे धीरे शुरुआत करो, फिर speed पकड़ो, किसी न किसी को अपना Regulator दे के रखो, जो हमें हमारी Progress की speed के कम या ज्यादा होने का अहसास कराता रहे.
10. बगुला :
जैसे बगुला अपनी इन्द्रियों को अधीन और चित को एकाग्र करता है उसी तरह हमें अपनी इन्द्रियों को अपने अधीन करके और अपने बल को जानकर सारे कार्यों को सिद्ध और संपन करना चाहिए.
11. घड़ी :
सिर्फ घड़ी को मत देखो, ये देखो वह क्या करती है - चलती रहती है, जिंदगी रुकने का नाम नहीं. समय नि: शुल्क है, लेकिन यह अमूल्य है. आप इसे अपना नहीं बना सकते, लेकिन आप इसका उपयोग कर सकते हैं. आप इसे अपने पास नहीं रख सकते पर आप इसे खर्च कर सकते हैं. एक बार आपने इसे खर्च कर दिया, आप इसे दुबारा वापस नहीं ला सकते.
12. गिलहरी :
आप सड़क पार करने से पहले दोनों तरफ देखे. आगे की योजना बना कर चलो. हमेशा सक्रिय रहना. खूब फाइबर युक्त भोजन का सेवन करें. अपने दुश्मनों को भ्रमित करके रखो, प्लान बदलते रहो. पेड़ों के साथ समय बिताना चाहिए. जिंदगी में थोड़ा पागलों वाली हरकत करो, अलग अलग शाखा पर चढ़ो.
13. कमरा :
गलत काम करके ज्यादा उड़ने पर छत से सिर जरूर टकराएगा.
14. कौवा :
हमें भी ठीक समय पर emergency के लिए लिए भोजन इकठा कर लेना चाहिए, हर समय सावधान रहना चाहिए, एक दम से किसी अनजान पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
15. पेड़ :
बड़े और गर्व के साथ खड़े होना चाहिए. पेड़ की हर शाखा से नजारे का आनंद लेना मतलब जीवन के हर पल का मजा लेना. खूब पानी पीना. हमारा जीवन अलग अलग दिशाओं में पेड़ की शाखाओं की तरह विकसित हो सकता है पर हमारी जड़े एक ही जगह पर, गहराई तक, मजबूती के साथ रहनी चाहिए मतलब हम कितने भी बड़े आदमी बन जाएँ पर अपने परिवार और अपने देश को न भूलें .
मित्रों बात ये नहीं है कि ये सब चीजें हमें क्या सिखाती है या हम इनसे क्या सीखते हैं, Important है ये कि हम जब भी इनको देखें हमें अपने Dreams और Habits याद आ जाएँ। आप लोग इसी तरह अपने Dreams और Habits को निखारने के लिए अपने घर या आस पास की चीजों का example बना सकते हैं.
मित्रों ध्यान रहे :-
"A Working 'ANT' is Better Than A Sleeping 'ELEPHANT",
i, e
"A Small Progress Everyday Leads Us To Big RESULTS".
काम करती हुई चींटी सोए हुए हाथी से ज्यादा अच्छी है,
मतलब,
छोटी छोटी प्रगति हमें बड़े परिणाम की तरफ ले जाती है.



शिक्षा और अनुभव उस शेरनी का दूध है, जो पियेगा वो दहाड़ेगा
और
फिर एक दिन हम Problems के लिए नहीं बल्कि Solutions के लिए जाने जायेंगे....
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मित्रों हम जब जब भी जिस चीज के पीछे भागेंगे, वह चीज हमारे हाथ नहीं आएगी :-
1) हम जितना Problems से भागेंगे, Problems उतना ही हमारा पीछा करेगी.
सार :- कई बार हमारे सामने कोई समस्या आती है तो हम ये कहते है की भगवन ये problem आपने हमें क्योँ दी. यहाँ सोचने वाली बात ये है कि वो problem किसी न किसी के सामने तो आएगी ही आएगी. धन्यवाद दें उस ईश्वर का कि ये problem हमारे सामने आई और हम अपनों के लिए ढाल बनकर खड़े हो गए. भागना नहीं है हमें अपनी problems से, उसका सामना करना है और हमारे पास इसके अलावा चारा भी क्या है और अब जब उस problem का सामना ही करना है तो Positive नजरिये (Attitude) के साथ किया जाये, जिससे एक दिन ऐसा हो कि लोग हमें Problems के लिए नहीं बल्कि Solutions के लिए जाने. (This is called GOODWILL).
2) हम पैसे के पीछे भागेंगे, तो पैसा हमारे हाथ नहीं आएगा।
सार :- हम काम के पीछे भाग कर अपना Knowledge और Experience बढ़ाएंगे, तो पैसा झक मार कर हमारे पीछे भागेगा। पैसे के अभाव में सिर्फ 1% लोग दूखी है, पर समझ के अभाव में 99% लोग दूखी है।
3) हम किसी से प्यार मांगेंगे, तो वहां से यकीन मानिये हमें प्यार नहीं मिलेगा।
सार :- हम हर किसी का ख्याल रखेंगे तो लोग अपने आप हमसे प्यार करेंगे।
4) हम पढ़ाई और ट्रेनिंग को मुश्किल समझेंगे तो पढ़ाई हमारा जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ेगी।
सार :- इस चीज को सोचिये कि पढ़ाई हमको difficult क्योँ लगती है. मैं आपको अपना experience बताता हूँ :- जब मैं Professional Course कर रहा था तो Maths में मुझे बहुत Problem आ रही थी. Reason साफ़ था कि स्कूल से ही Maths में मेरे Basics बहुत weak थे. मैंने Professional Course करते हुए स्कूल के टीचर (Important है कि स्कूल टीचर से Basics strong की, न की Professional Teacher से ) से सबसे पहले अपने Maths के Basics strong किये और तब अपना Professional course बहुत अच्छी तरह से Complete किया। मित्रों हमें जिंदगी भर अपने रास्ते अपने हिसाब से Design करने हैं न की अपने पड़ोसी या अपने दोस्त या अपने रिस्तेदार के Experience के हिसाब से. दूसरों का Experience सुनना पूरा है पर उसके बाद दिमाग अपना चलाना है. दूसरे की "Trap of Thinking" में नहीं फंसना।
मित्रों हम इस बात पर जिंदगी में बिलकुल ध्यान न दे की दुनिया हमारे बारे में क्या सोच, समझ रही है. रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी एक अच्छा जूता पहनकर उस पर चला जा सकता है, लेकिन यदि अच्छे जूते के अंदर एक भी कंकड़ हो तो एक अच्छी सड़क पर भी कुछ कदम चलना मुश्किल है ।
यानी -
"बाहर की चुनोतियों से नहीं हम अपनी अंदर की कमजोरियों से हारते हैं "
सार :- मित्रों आज के समय में हम सबको पता होता है की हम किस वजह से दूसरों से पीछे हैं पर बस हम आलस्य और कारण पता होने के बावजूद उन चीजों को नहीं करते और Blame game में पड़ जाते हैं. मित्रों जैसे ही हम अपने Failure का ठिकरा दूसरों पर फोड़ते है तो समझ जाइये हमने अपनी Progress के रास्ते में रुकावट डालना शुरू कर दिया है. "Don't Blame Others for your failure."
सोच के देखिये कौन जिम्मेदार है हमारी failure का, थोड़ा ध्यान करते हैं :-
जितना बडा प्लाट होता है उतना बडा बंगला नही होता,
जितना बडा बंगला होता है उतना बडा दरवाजा नही होता,
जितना बडा दरवाजा होता है उतना बडा ताला नही होता,
जितना बडा ताला होता है उतनी बडी चाबी नही होती,
परन्तु चाबी पर पुरे बंगले का आधार होता है।
इसी तरह हमारे जीवन में बंधन और मुक्ति का आधार "हमारे अपने मन" की चाबी पर ही निर्भर होता है।
हम सबकुछ करें पर किसी को परेशान न करें, हम सबके बारे में हमेशा अच्छा सोचें, इसी में हमारी जीत है.
किसी ज्ञानी ने बिलकुल सही कहा है :-
अशिक्षा और अज्ञानता हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है,
पर
शिक्षा (Education) और अनुभव (Experience) उस शेरनी का दूध है, जो पियेगा वो दहाड़ेगा।


ऊपर से दिखने वाले बर्फ के टुकड़े ने Titanic को डूबा दिया  

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टाइटैनिक दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था। वह इंग्लैंड से अपनी पहली यात्रा पर 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ। 4 दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक बर्फ के टुकड़े से टकरा कर डूब गया जिसमे 1,517 लोग मारे गए, जो इतिहास की सबसे बड़ी समुद्री आपदाओं में से एक है। टाइटैनिक सबसे अनुभवी इंजीनियरों के द्वारा डिजाइन किया गया था और इसके निर्माण में उस समय की सबसे उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल किया गया था।
मित्रों यह सिर्फ एक बर्फ का टुकड़ा नहीं था, यह था Iceberg (हिमशैल), जिसका केवल 10% हिस्सा पानी के ऊपर दिखता है और 90% हिस्सा पानी के नीचे रहता है.
सार :-
हम इंसान भी इस Iceberg (हिमशैल) की तरह होते हैं जिनका केवल 10% हिस्सा ही Knowledge, Skill, Discipline और Decision Making के रूप में दुनिया के सामने ऊपर से दिखाई देता है पर इस 10% को बनाने में हमारा 90% हिस्सा किसी को भी दिखाई नहीं देता हमारे सिवाए। ये 90% है हमारा Attitude, Approach, Thought, Mind - Set, Sacrifice, Dedication, Habits इस्यादि।
मित्रों ध्यान रहे जिस तरह Iceberg (हिमशैल) ने सिर्फ 10% पानी के बाहर और 90% पानी के अंदर रह कर, इतने बड़े जहाज को डुबो दिया तो :-
"क्या हम इंसान अपने Hard Work के साथ साथ अपने अंदर के 90% हिस्से रूपी Attitude, Approach, Thought, Mind - Set, Sacrifice, Dedication, Habits को Positive रखते हुए, अपने बाहर के 10% हिस्से रूपी Knowledge, Skill, Discipline, Decision Making को इतना नहीं बढ़ा सकते कि जिससे हम दुनिया की कितनी ही बड़ी से बड़ी परिस्थिति को परास्त कर अपने जीवन की हर ऊंचाइयों को छु जाएँ. "
सिर्फ मेहनत से ही कोई आगे नहीं बढ़ता ये बात ध्यान रहे. मेहनत (HARDWORK) तो आप और हम लोगों से ज्यादा मजदूर कर रहा है. उसमें जब तक हम अपने अंदर का 90% नहीं झोंकेंगे, तब तक हमारा 10% हिस्सा नहीं चमकेगा। इसका मतलब साफ़ है :-
SUCCESS = Hardwork + 90% + 10%
आज की तारीख में होशियारी से ज्यादा आल राउंडर बनने की जरुरत है.
मित्रों Attitude को थोड़ा ज्यादा समझने की जरुरत है, पूरा का पूरा game हमारी जिंदगी में इसी Attitude का है.
Attitude मतलब "नज़रिया"।
इसको कुछ example के साथ समझते हैं :-
(1) मान लीजिये आप को करेला पसंद नहीं है और घर पहुँचते पहुँचते आपको बहुत तेज भूख लगी है और जैसे ही आपने खाने की प्लेट में करेला और रोटी देखी, आपकी भूख ही गायब हो गयी. अब सोचिये अगर राजमा की दाल होती तो, आप शायद Double खा लेते।
(2) जो रिस्तेदार हमें पसंद नहीं, उनके घर हम जाना पसंद नहीं करते और जो पसंद है वहां हम बार बार जाते हैं, हैं तो दोनों रिस्तेदार ही.
(3) Maths मुझे अच्छी नहीं लगती पर मेरे दोस्त को बहुत अच्छी लगती है, सिर्फ नजरिये का फर्क है वर्ना आटा तो हम दोनों एक ही चक्की का खाते हैं.
(4) हम बरसात में थोड़ा सा भी भीग जाएँ तो परेशानी वर्ना बच्चे तो उसी बारिश में नाचते हैं.
(5) सर्दियों में ठंड ज्यादा हो जाये तो हाई तोबा वर्ना जुग्गी झोपड़ी में तो बच्चे बिना स्वेटर के ही घूमते हैं.
(6) एक ही नेता का टीवी में भाषण सुनने पर मुझे अच्छा और मेरे दोस्त को बुरा लगने लगता है, पर न तो वो नेता हमें जानता है न हम उससे कभी मिले हैं.
(7) किसी एक ही जगह पर दोस्तों के साथ घूमना अच्छा लगता है और उसी जगह पर घर वालों के साथ बोरियत आने लगती हैं.
(8) ऑफिस में बॉस द्वारा दिया गया काम कभी तो बहुत मन लगा कर करते हैं और कभी कुड़ कुड़ कर.
मित्रों यह सब हमारे छोटे से दिमाग का कमाल है, ये सब हमारे Negative और Positive नजरिये का कमाल है. हम लोगों की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि हम काम भी कर रहे होते हैं और उस काम को करते समय उस काम की बुराई भी कर रहे होते हैं, बस यही Negative Attitude है. सोचिये अब जब मेहनत (Hardwork) करनी ही है तो उसको Positive Attitude के साथ करने में क्या बुराई है जिससे कि हमारी Knowledge और Skill में भी इजाफ़ा हो.
मित्रों जिंदगी में नजरिया बदलो, जिंदगी बदल जाएगी।
स्वामी विवेकानंद ने सही कहा है :-
"ब्रम्हाण्ड की सारी शक्तियां हमारी हैं. वो हमी हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार हैं."
मित्रों हम अपनी पैदाइशी परिस्थितियों में जस के तस रहकर और उन परिस्थितियों को कोसने के लिए पैदा नहीं हुए हैं.
हम अपने और अपने से जुड़े तमाम लोगों को उन परिस्थितियों में से निकालने के लिए पैदा हुए हैं.
सिर्फ कहने और सोचते रहने का नहीं, कुछ कर गुजरने का समय है.

क्या भारत फिर से सोने की चिड़िया बन सकता हैं ???????
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10 पक्के दोस्त थे ……
पहले 4 गरीब थे, (गुजारे लायक कमा लेते थे) - कुछ भी Tax नहीं देते थे.
5वां थोड़ा पैसे वाला था, (Tax देता था - 10 हजार रुपये सालाना)
6ठा थोड़ा और पैसे वाला था, (Tax देता था - 50 हजार रुपये)
7वां थोड़ा और पैसे वाला था, (Tax देता था - 1 लाख रुपये सालाना)
8वां थोड़ा और पैसे वाला था, (Tax देता था - 10 लाख रुपये सालाना)
9वां थोड़ा और पैसे वाला था, (Tax देता था - 1 करोड़ रुपये सालाना)
10वां सबसे ज्यादा अमीर था(Corporate था), (Tax देता था - 10 हजार करोड़ रुपये सालाना)
सारे दोस्त एक साथ रहते थे, उन सब का गैस का बिल 10000 रुपये महीना आता था.
क्योँकि सारे पक्के दोस्त थे तो इन्होने Decide किया की गैस का बिल पहले चार दोस्तों से नहीं लिया जायेगा(क्योकि वो गरीब हैं) और बाकी 6 दोस्ते अपनी अपनी कमाई के हिसाब से बिल को बाटेंगे और उन्होंने 10000 रुपये का बिल
कुछ इस तरह बाँट लिया :-
पहले 4 से कुछ नहीं लिया गया.
5वे ने 100 रुपये दिए.
6ठे ने 300 रुपये दिए.
7वे ने 700 रुपये दिए.
8वे ने 1200 रुपये दिए.
9वे ने 1800 रुपये दिए.
10वे ने 5900 रुपये दिए.
जब Government ने यह देखा की ये सारे दोस्त हर महीने गैस का 10000 रुपये का बिल Time से जमा कर देते हैं, तो Government ने उन्हें 2000 रुपये की Subsidy दे दी.
अब सारे दोस्तों को गैस का बिल 10000 रुपये की जगह 8000 रुपये ही देना था.
उन लोगों ने बिल को इस तरह बांटा :-
पहले 4 से कुछ नहीं लिया गया.
5वे से भी कुछ नहीं लिया गया.
6ठे ने 200 रुपये दिए.
7वे ने 500 रुपये दिए.
8वे ने 900 रुपये दिए.
9वे ने 1400 रुपये दिए.
10वे ने 5000 रुपये दिए.
इस तरह कुछ दोस्तों की Government द्वारा दी गई Subsidy से Saving भी हो गई.
दोस्तों की Saving इस तरह हुई.
5वे की 100 रुपये की Saving (100 %) (पहले 100 रुपये, अब कुछ भी नहीं),
6ठे की 100 रुपये की Saving (33 %) (पहले 300 रुपये, अब 200 रुपये),
7वे की 200 रुपये की Saving (28 %) (पहले 700 रुपये, अब 500 रुपये),
8वे की 300 रुपये की Saving (25 %) (पहले 1200 रुपये, अब 900 रुपये),
9वे की 400 रुपये की Saving (22 %) (पहले 1800 रुपये, अब 1400 रुपये),
10वे की 900 रुपये की Saving (15 %) (पहले 5900 रुपये, अब 5000 रुपये).
यहाँ से कहानी में जबरदस्त Twist हुआ जो की किसी भी Country को बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है.
5वे दोस्त ने 6ठे, 7वे, 8वे और 9वे दोस्तों को बोला और कहा कि मुझे तो बच रहे हैं सिर्फ 100 रुपये और 10वे दोस्त को अकेले 900 रुपये बच रहे हैं, यह तो कोई बात नहीं हुई.. जो चार गरीब दोस्त थे वो भी चिल्लाने लगे कि हमें तो Saving में से कुछ भी नहीं मिला।
और उन सब 9 दोस्तों ने मिलकर 10वे को भगा दिया।
What Happened Next …………
अब जब अगले महीने गैस का बिल 8000 रुपये का आया तो उन 9 दोस्तों को यह देखकर चक्कर आ गया कि उनके पास तो सिर्फ 4100 रुपये ही है :-
पहले 4 से कुछ नहीं लिया गया.
5वे ने कहा मैं तो 100 रुपये ही दूँगा.
6ठे ने कहा मैं तो 300 रुपये ही दूँगा.
7वे ने कहा मैं तो 700 रुपये ही दूँगा.
8वे ने कहा मैं तो 1200 रुपये ही दूँगा.
9वे ने कहा मैं तो 1800 रुपये ही दूँगा.
जब उन्होंने सबका Total किया तो कुल 4100 रुपये ही जमा हुए जबकि गैस का बिल तो 8000 रुपये का था. उन 9 दोस्तों के पास 3900 रुपये की कमी पड़ गयी और यहीं से उन 9 दोस्तों का बजट बिगड़ गया.
मित्रों, यही हाल अपने देश का भी होता है,
जो सबसे ज्यादा कमा रहा होता है वो सबसे ज्यादा Tax भी देता है.
अब क्योकि सबसे ज्यादा Tax देने वाले को तो हम अपने देश और प्रदेशों से भगा देते हैं जिससे वो अपना पैसा दूसरे देशों में Invest करके वहां की Government को कमा कर भी देते हैं और रोज़गार भी दूसरे देश में पैदा करते हैं और हमारी सरकार Deficit में चलती रहती है.
मित्रों Subsidy बुरी चीज नहीं है पर आगे भी हमें Subsidy चाहिए तो बड़ी बड़ी कंपनियों को अपने देश तथा प्रदेशों में बुलाना ही पड़ेगा, जिससे ज्यादा से ज्यादा Tax के साथ साथ रोज़गार भी बड़े और हमारे सारे के सारे 10 दोस्त एक साथ रह पाएं।
मित्रों जब तक बड़े बड़े Corporate भारत में निवेश नहीं करेंगे तब तक Tax और रोज़गार बढ़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योँकि सिर्फ Government रोज़गार पैदा नहीं कर सकती।
जी हाँ अपनी निवेश की policies के जरिये ज्यादा से ज्यादा निवेश भारत में करवा कर, भारत फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है, इसमें कोई शक नहीं।
सोच है हमारी आखिर देश है हमारा ......

हमारी जिंदगी में हमारे अलावा पूरी दुनिया दर्शक है, मात्र दर्शक ....
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1. सचिन तेंदुलकर अपने दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता,पत्नी, बच्चों, भाई-बहन, बुआ-फूफा,चाचा-चाची, ताऊ-ताई, उनके सारे Cousins, नाते-रिस्तेदार, दोस्त-यार और सारी Public के सामने स्टेडियम में बैटिंग कर रहे थे.
सार :- मित्रों हमारी जिंदगी में भी ऊपर लिखे हुए सारे के सारे रिश्ते (चाहे खून के रिश्ते हों या नहीं या चाहे कितने ही करीबी क्योँ न हों) सिर्फ और सिर्फ दर्शकों की तरह काम करते हैं.
2. बैटिंग करते हुए सचिन तेंदुलकर ने किसी बॉल पर 0 रन, किसी में 1 रन, किसी में 2, किसी में 3, किसी में चौका, किसी में छक्का मारा होगा। स्टेडियम में दोनों टीमों के प्रसंशक बैठे होते हैं. कुछ सचिन के प्रसंशक और कुछ विरोधी टीम के प्रसंशक। सचिन के प्रसंशक सचिन से रनों का अम्बार खड़ा करके अपनी टीम को मैच जिताने के लिए चिल्ला रहे होंगे और विरोधी टीम के प्रसंशक सचिन के जल्दी आउट करने की नारे बाजी कर रहे होंगे। यहाँ पर हम सब लोगों को एक चीज का पता है कि चाहे दर्शक :-
(i) स्टेडियम में हों,
(ii) घर से live telecast देख रहे हो,
(iii) रेडियो पर सुन रहे हो,
(iv) न्यूज़ में सचिन के रनों के बारे में interested हों,
कोई भी सचिन की जगह बैटिंग नहीं कर सकता, हम उनको बाहर से प्रेरित कर सकते हैं, हमारी सचिन के प्रति राय उनकी अच्छी या ख़राब बैटिंग के आधार पर ही बनेगी।
सार :- बस मित्रों अब यही सब हमारे साथ भी होता है पूरी दुनिया, जी हाँ पूरी दुनिया हमारी जिंदगी में मात्र दर्शक की तरह है, उससे ज्यादा कुछ नहीं। जिस तरह सचिन मैच में उम्मीद नहीं कर सकते की दर्शक उनकी जगह आकर खेलें उसी तरह मित्रों हम भी अपनी जिंदगी जीने के लिए किसी दर्शक को नहीं कह सकते। कुछ हमारे प्रसंशक होंगे, कुछ विरोधी, समय के साथ साथ कुछ प्रसंशक विरोधी बन जायेंगे, कुछ विरोधी प्रसंशक। ये सब जिंदगी भर हमारे performance पर चलता रहेगा इसमें बुरा मानने वाली बात नहीं है, यही जिंदगी की सच्चाई है और इसे हमें accept करना ही होगा। ये सबके साथ होता है कभी हमारे किसी कार्य से हमारे माता पिता नाराज़ हो जाते है तो कभी बहुत खुश, पर हमारी जिंदगी में वे रहते तो दर्शक ही हैं, क्योँकि उनका रवैया हमारे Performance पर base है.
3. मैदान में बैटिंग करते करते कभी सचिन ने पानी के लिए, कभी बैट, gloves, pad change करने के लिए, कभी हेलमेट लाने या ले जाने के लिए किसी न किसी को बुलाया होगा, तेजी से रन न बनाने पर उनके साथियों ने उनको तेजी से रन बनाने का इशारा किया होगा।
सार :- मित्रों इसी तरह हमारी जिंदगी में हमारे अपने हमारी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए समय समय पर हेल्प करते रहते हैं, इशारा करते रहते है, इसमें कोई शक नहीं पर मैच में सचिन को और असली जिंदगी में हमें ही perform करना पड़ेगा। दर्शक (हमारे अपने) हमारी समय समय पर मदद करते रहते हैं पर अच्छा काम करने पर हमारी वाहवाही और ख़राब काम करने पर हमारी बुराई ही करेंगे, ये बात हमेशा ध्यान रहे.
4. इसी तरह दुनिया में सभी के साथ ऐसा ही होता है, उनके लिए भी उनके अलवा सब दर्शक है और उन्हे भी अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है जैसे :-
मेरे पिताजी के लिए उनके अलावा पूरी दुनिया मात्र दर्शक है, उन्हें अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी है.
मेरी माताजी के लिए पूरी दुनिया मात्र दर्शक है, उन्हें भी अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी है.
मेरी पत्नी के लिए पूरी दुनिया मात्र दर्शक है, उन्हें भी अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी है.
मेरे लिए पूरी दुनिया मात्र दर्शक है, मुझे भी अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी है.
सार :- अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ने से मतलब है - अपने हर role को निष्ठापूर्वक मर्यादायों में रह कर, कभी बेटा,तो कभी Husband, पिता, दादा , नाना, ताऊ, चाचा, मौसा, दोस्त आदि आदि बन कर निभाना.
इसलिए, मित्रों मान कर चलिए हर किसी की जिंदगी में दुनिया के दूसरे लोग मात्र दर्शक हैं, वो लोग सिर्फ और सिर्फ हमारी मदद कर सकते हैं, हमें Motivate कर सकते हैं, हमारी समय समय पर पैसों से मदद कर सकते हैं, पर अगर हम उन पर dependent होकर अपनी जिंदगी को सवारना चाह रहे हैं तो ये हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल होगी।
किसी ने सही ही कहा है :-
जिनमें अकेले चलने के हौसले होते हैं,
उसके पीछे एक दिन काफिले होते हैं.

"ये वक्त गुज़र जायेगा"
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मित्रों आपने कई बार अपने बुजुर्गों के मुँह से ये कहावत सुनी होगी।
क्या कभी आपने गौर किया है इस कहावत पर कि बस पढ़ा, सुना, थोड़ा बहुत ध्यान दिया और फिर भूल गए.
इस कहावत के Positive और Negative दोनों पहलुओं पर गौर करते हैं :-

1) सोचिये अगर हम यह कहावत "ये वक्त गुज़र जायेगा" अपने ख़राब वक़्त में पढ़ेंगे तो हमारे अंदर एक Positive Energy का संचार हो जायेगा कि चलो ख़राब वक़्त हमेशा नहीं रहेगा। हम भी यही चाहते हैं कि आपके, हमारे अंदर हमेशा Positive Energy बनी रहे क्योँकि हम सभी जानते हैं कि हमारी और हमसे जुड़े तमाम लोगों की जिंदगी अगर ऊपर उठ सकती है तो वह सिर्फ और सिर्फ Positive Energy से ही उठा सकती है.
2) अब सोचिये कि अगर हम यह कहावत "ये वक्त गुज़र जायेगा" अपने अच्छे वक़्त में पढ़ेंगे तो यह कहावत हमें गलत काम करने से रोकेगा क्योँकि हमारे मन में ये विचार आएगा की कहीं हमारा अच्छा वक़्त खत्म न हो जाये। हम सभी जानते हैं कि गलत काम करने और बोलने पर एक Negative Energy हमारे और साथ ही साथ हमसे जुड़े सभी लोगों के लिए भी automatically create हो जाती है.
तो मित्रों यह सिर्फ एक छोटी सी कहावत नहीं है, यह हमारी Progress और Success से जुड़ी हुई एक रामबाण कहावत है जिसका आप Printout निकाल कर घर या ऑफिस में लगा सकते हैं.
मित्रों ये कहावत "ये वक्त गुज़र जायेगा" हमें Positive Circumstances में Negativity की तरफ न जाने और Negative Circumstances में Positive रहने के लिए प्रेरित करती है.
आपने अमेरिकन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का नाम तो सुना होगा, शायद इस कहावत "ये वक्त गुज़र जायेगा" के जरिये हम सब उनसे कुछ प्रेरणा ले पाएं:
सन 1831 में उनका business बंद हो गया. 1832 में वो Election हार गए. 1833 में उन्होंने नया business किया और फिर fail हो गए. 1836 में उनका nervous breakdown हो गया. 1843 में वो Election हार गए. 1848 में वो फिर Election हार गए. 1855 में वो फिर Election हार गए. 1856 में वो फिर से Election हार गए. 1859 में वो फिर एक बार Election हार गए.
और तब जाकर 1860 में वो अमेरिका के राष्ट्रपति बने.
29 साल लगे उन्हें इस ऊंचाई में पहुँचने के लिए. Success कोई रातों रात का काम नहीं है.
मित्रों Success हमारे खट्टे मीठे पलों का संग्रह है और इसमें Time लगता है, ये बात हमें हमेशा याद रखनी पड़ेगी।
ऐसी ही अनगिनत प्रेरणादायक कहानियाँ हम सुनते रहते हैं.
ये नहीं था की अब्राहम लिंकन Perfect थे. दुनिया में कोई भी Perfect नहीं है. वो गलतियां करते रहे, fail होते रहे. पर सबसे बड़ी बात उन्होंने कभी हार नहीं मानी, वो अपनी गलतियों से सीखते रहे और चलते रहे चाहे कितने ही धीरे धीरे।
ये महत्व नहीं करता की आपने कितनी बार गलती की या आप कितनी बार fail हुए हैं, महत्व ये रखता है कि :-
अगर आप उड़ नहीं सकते तो दौड़िये,
अगर आप दौड़ नहीं सकते तो चलिए,
अगर आप चल नहीं सकते तो रेंगीए।
हमें एक बात हमेशा याद रखनी है कि हमें किसी भी हालत में आगे बढ़ना है.
हमें अपनी हर गलती या Failure के बाद एक नए जोश, होश, हौसले, नई Planning, नए Idea के साथ Bounce Back करना ही करना है.
बस Important ये है कि हमें अपने सपनों को मरने नहीं देना है किसी भी हालत में, इस कहावत को दिलो दिमाग में याद रखते रखते कि :-

"ये वक्त गुज़र जायेगा".

अगर हम change के लिए तैयार है, तो मान कर चलिए 1000 रास्ते हमें नज़र आएंगे और अगर नहीं तो दुनिया में कोई हमें change नहीं कर सकता.
मित्रों मानिये change का पहला कदम हमें खुद ही उठाना पड़ेगा।
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मित्रों शिकारी को अगर समस्याएं और खुद को हिरन मान कर ये कहानी पढ़े तो देखें क्या होता है :-
1. एक बार कई शिकारी एक हिरण के पीछे लग गए.
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सार :- मित्रों चाहे हम Businessman हों, Employees हों, Student हो या कोई भी काम करते हों, Problems हमारे सामने अलग अलग रूप में आती रहती हैं.
2. हिरन ने शिकारियों को अपने पीछे आता हुआ देखा तो वो वहां से भागकर ऊँची ऊँची घास में छिप गया.
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सार :-
(a) ये एक human nature है कि जब कभी भी Problems हमारे सामने आती है तो सबसे पहले हम उस Problem का मुकाबला करने के बजाय उससे भागते हैं.
(b) मित्रों जमाना नई नई Technology का है :-
(i) Businessman नई Technology adopt नहीं करना चाहता
(ii) Employee Office में नई technology आने पर उसकी Training ले कर सीखना नहीं चाहता
(iii) Student subject को समझने के बजाये उसको रटना चाहता है.
(iv) घर में हम खुद तो smart phone से advance होना चाहते हैं पर अपने बुजुर्गों को smart फ़ोन से advance नहीं करना चाहते.
3. कुछ देर में उस हिरन को भूख लगी और वो हरी हरी घास मस्त हो कर खाने लगा.
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सार :-
(a) अब जब कुछ दिन तक कुछ नहीं होता तो हम सभी ये सोचते हैं की सब कुछ तो ठीक ठाक चल रहा है और वही अपने पुराने ढ़र्रे में मस्त हो जाते हैं.
4. और ये भूल गया की शिकारी वहीं आस पास उसको ढूंढ रहे हैं.
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सार :-
(a) और एक दिन :-
(i) आपके ही competition में नई Technology से नया business शुरू हो गया
(ii) Office में नई नई Technology से पढ़ा हुआ नया staff आ गया
(iii) Student जब स्कूल/ कॉलेज में पुरानी रटने वाली विद्या से पास होकर job के लिए गया तो job की लाइन में लगे लगे ही सालों हो गए, जबकि कुछ Students Internet में पढ़ाई के नए नए और easy way में समझाये गय वीडियो देख कर नई नई ऊंचाइयां छू रहे हैं
(iii) अपने बुजुर्गों को तो smartphone सीखने और उसमें Positive Motivational video / story सिखाने का वक़्त हमारे पास नहीं था तो young और पुरानी पीढ़ी का Communication gap भी problem की तरह खड़ा होने लगा.
5. काफी देर अपने चारों तरफ की घास खाने के बाद भी हिरन को यह अहसास नहीं हो पाया की अब वो शिकारियों को बिलकुल आसानी से दिख पा रहा है.
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सार :-
और इतना भी ध्यान नहीं रखते की Problem अभी खत्म नहीं हुई है, अभी तो शुरू हुई है, जब वो छोटी सी चोट थी तब तो उसकी मरहम पट्टी करवाई नहीं, पर अब जब धीरे धीरे विकराल रूप ले चुकी है तो इधर उधर भाग रहे हैं .......
6. फिर क्या था, शिकारियों ने हिरन को पकड़ लिया और दूसरे शिकार की तलाश में निकल पड़े.
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सार :-
और अंत में हम Problem का शिकार हो जाते हैं. और मन में सारे प्रश्न, प्रश्न बनकर ही रह जाते हैं, जैसे मेरा business क्योँ नहीं चल रहा, मेरी salary क्योँ नहीं बढ़ रही, मुझे पढ़ाई में कुछ समझ नहीं आ रहा, Competitive exam में हम qualify क्योँ नहीं हो पा रहे हैं, मेरी Job क्योँ नहीं लग रही इत्यादि।
मित्रों समस्याओं से भागिए नहीं, तुरंत उसका solution ढूंढिए।
ये सारा game है "Invest in Ourself/ Regular Training" का.
कुछ example लेते हैं :-
"Invest in Ourself/ Regular Training" -
मित्रों एक बार job लगने के बाद हम ये भूल जाते हैं की जो हमारे बाद job में लगते हैं वो नई नई technology पढ़कर job में आये हैं. अब अगर हम office में नई technology के साथ काम नहीं करेंगे तो हमें काम नहीं मिलेगा, काम नहीं मिलेगा तो salary increments तो छोड़िये, नौकरी छोड़ने की नौबत आ जाएगी।
मित्रों खुद सोचिये "Invest in Ourself"/ Regular Training न करके कहीं हम अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी तो नहीं मार रहे हैं. हम नए "कोर्स फीस" और "Time न होने" से डरते हैं, अब अगर मान भी लीजिये उस कोर्स की फीस 50000 रुपये है, अब अगर 50000 रुपये खर्च कर आपको 5000 रुपये महीने का increment मिला तो सोचिये आपने 10 महीने में ही ये पैसे वसूल कर लिए और Technology से upgrade रहने का tag भी लगा लिया।
मित्रों आज की date में अपनी नौकरी को Business ही मानिये, जैसे Business को चलाने के लिए बार बार Invest करना पड़ता है तभी income आती है वैसे ही अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए भी आपको बार बार अपने ऊपर Regular Training ले कर Invest करना पड़ेगा।
मित्रों सिर्फ समस्या समस्या बोल कर solution नहीं निकलेगा, मूल प्रश्न है :-
(i) "क्या हम वाकई change के लिए तैयार हैं" या
(ii)"क्या हम सचमुच में change चाहते हैं".
मान कर चलिए :-
बहुत जोर पड़ता है change होने के लिए, पर हमारा मानना है की अगर change अच्छे के लिए हो, हमारी progress के लिए हो, हमारी family के future के लिए हो तो हमें हिम्मत करके, दिल पर हाथ रखकर change हो जाना चाहिए।
मित्रों ये मूल मंत्र याद रखिये -
"Don't see others as doing better than you,
beat your own records daily,
because Success is a fight between you and yourself ".


जानिए अपनी क्षमताओं को .....
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सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक हैं - अमिताभ बच्चन जी.
मित्रों अमिताभ जी ने वे सारे काम किये जो एक आम हिंदुस्तानी अपनी पूरी जिंदगी में करना चाहता है, "बिना उम्र का लिहाज किये हुए" - कहीं सफल तो कहीं असफल...... उनकी जिंदगी से अपने को correlate करें उम्र दर उम्र :-
- पैदा होने पर (11-10-1942)
उनके घर वालों ने पहले उनका नाम इंकलाब रखा, बाद में बदलकर अमिताभ किया।
सार :- कई बार हमारे घर वाले भी हमारा नाम बदलते रहते है.
- वो Engineer बनना चाहते थे और Indian Air Force join करना चाहते थे.
सार :- स्कूल, कॉलेज में हर बच्चे का सपना बड़ा आदमी बनने का होता है.
- उनके पास आर्ट्स में double मास्टर्स की डिग्री है.
सार :- जब तक नौकरी नहीं लगती हम लोग भी Competitive Exam की तैयारी के साथ साथ कुछ न कुछ डिग्री लेते ही रहते हैं.
- पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने कोलकता की एक कंपनी में Executive और Freight Broker की नौकरी की.
सार :- पढ़ाई पूरी करने के बाद और किसी Competitive Exam में न निकल पाने पर घर वालों के pressure में हमें भी अपनी मनपसंद नौकरी न मिलने पर Compromise करना पड़ता है.
- उन्होंने सबसे पहले second hand कार खरीदी थी.
सार :- सपने बड़े होते हैं पर पैसे भी एक मज़बूरी है, हकीकत का सामना करते हुए धीरे धीरे ही हम अपने सपने पूरे करने की कोशिश करते हैं.
उम्र :- 27 साल
- अभिनय में अपना कैरियर आजमाने के लिए उन्होंने वो नौकरी छोड़ दी और मुंबई आ गए। उन्होंने अपनी फिल्मों की शुरूआत 1969 में की।
सार :- कहीं तो risk लेना ही पड़ता है बिना Result सोचे हुए. मित्रों एक बात ध्यान रहे " किसी नए काम का RISK न लेना ही जिंदगी का सबसे बड़ा RISK है."
- ऐसा सुना है कि फिल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में समाचार उद्घोषक, नामक पद हेतु नौकरी के लिए आवेदन किया जिसके लिए इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
सार :- एक बार किसी चीज में नाकामी मिलने का मतलब ये नहीं की पूरी दुनिया ने हमें नकार दिया, प्रयास करते रहना चाहिए।
- अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने कई रातें Marine Drive, Mumbai की bench में बिताई और कई वर्षों तक Actor, Director महमूद साहब के घर में रूके।
सार :- संघर्ष के दिनों में ऐसा बहुत बार होता है, हमें ये नहीं सोचना चाहिए की हम इकलौते ही संघर्ष करते हैं. जो भी ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं उन्होंने संघर्ष के दिन ऐसे ही काटे है, चाहे कोई भी field रही हो.
उम्र :- 28 से 38 साल
- कई लगातार फ्लॉप फिल्मों के बाद 1973 में उनकी पहली बड़ी सुपरहिट फिल्म "जंजीर" रही. 1970 से 1980 के दौर में उन्‍हें 'वन मैन इंडस्‍ट्री' तक करार दिया गया।
सार :- सफलता रातों रात नहीं मिलती और मिलनी भी नहीं चाहिए। गलतियोँ से सीख सीख कर ही इंसान perfection की तरफ जाता है.
उम्र :- 40 साल
- 1982 को कुली फिल्‍म की शूटिंग के दौरान उन्‍हें गंभीर चोट लग गई। उनका काफी खून बह गया और उन्हें कई बोतल खून चढ़ा, उसमें से शायद कुछ infected खून भी उन्हें चढ़ गया जिसकी वजह से उनका लिवर सिर्फ 25% काम करता है (इसका Ad शायद हम सब लोग आजकल टीवी पर देख भी रहे हैं)।
सार :- मित्रों जिंदगी में Problems तो आती ही रहेंगी, हम उन Problems को कैसे tackle करते है ये हमारे ऊपर निर्भर करता है.
- इसी वक़्त वे अपने को मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर महसूस करने लगे. उनके मन में निराशावादी विचारधारा का जन्म हुआ और उन्होंने फिल्मों से सदा के लिए छुट्टी लेने का सोचा.
सार :- जब Problems आती है तो नकारात्मकता आना स्वभाविक है, मित्रों बस यही समय है धैर्य रखने का और ये सोचने का की " ये वक़्त गुजर जायेगा".
उम्र :- 42 साल
- 1984 में उन्होंने राजनीति में शामिल होने का निर्णन किया और इलाहबाद से सांसद भी रहे। पर मात्र 3 साल के अंदर ही 1987 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया.
सार :- मित्रों जब हम एक काम में ज्यादा अच्छा नहीं कर पाते तो हमारे दिमाग में भी नए नए काम आते रहते हैं, राजनीति में आना किसको अच्छा नहीं लगता, पर अगर हम किसी चीज में आ भी गए और वो चीज हमें रास नहीं आ रही है तो हमें अपना रास्ता बदल लेना चाहिए, बजाय इसके की हम वहीं पर डटे रहें।
उम्र :- 54 साल
- इसके बाद वे निर्माता बने और उन्होंने 1996 में अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड(ABCL) की स्थापना की। उन्होंने ABCL को वर्ष 2000 तक 1000 करोड़ रुपये वाली मनोरंजन, व्यावसायिक फ़िल्म उत्पादन, ऑडियो और वीडियो कैसेट डिस्क उत्पादन, टेलीविजन सॉफ्टवेयर और Event Management की एक प्रमुख कंपनी बनाने का सपना देखा।
सार :- मित्रों फिर से वही बात " किसी नए काम का RISK न लेना ही जिंदगी का सबसे बड़ा RISK है". सपने देखना किसको अच्छा नहीं लगता, हम लोग भी रोज़ अलग अलग Business करने के सपने देखते है और Project Report भी तैयार करके नए नए Business करते रहते हैं.
उम्र :- 55 साल
- पर कंपनी के द्वारा उत्पादित कोई भी फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी और वर्ष 1997 में ABCL को वित्तीय और क्रियाशील दोनों तरीके से नुकसान हुआ।
सार :- पर हम ये सोचें कि जो Business के सपने हमने देखे वो हमेशा Successful हो जाएं तो शायद ये सोच गलत होगी।
- जब उनकी कंपनी ABCL आर्थिक संकट से जूझ रही थी तब उनके मित्र ने उनकी काफी मदद की थी, इसमें कोई शक नहीं।
सार :- संकट के समय में ही असली रिश्तेदारों और मित्रों की पहचान होती है पर उसके लिए जरुरी है कि हम भी समय पर उनके काम आएं. ताली एक हाथ से नहीं बजती।
उम्र :- 56 साल
- 1998 के बाद उन्होंने अपने अभिनय के कैरियर को संवारने का प्रयास किया जो की ठीक ठाक रहा.
सार :- एक बार कहीं पर असफल होने पर निराशा और Negativity तो बहुत होती है पर चलते रहना ही जिंदगी है, चाहे हम कितनी ही हलकी गति से चलें। यहाँ पर सबसे बड़ी बात उन्होंने फिर से अपना वही काम शुरू किया जिसमें उनका Perfection था. हमें भी अपने नए नए Business उन्ही field के इर्द गिर्द करने चाहिए जिस काम में हमारा वर्षों का अनुभव हो.
उम्र :- 58 साल
- वर्ष 2000 में कौन बनेगा करोड़पति में उन्हें इस कार्यक्रम के संचालन का मौका मिला और यह कहा जाता है कि साप्ताहिक प्रकरण के लिए उन्हें 25 लाख रुपए मिलते थे.
सार :- मित्रों Opportunities जिंदगी में आती रहती है और उसके लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए, कोई भी समय हमारे लिए Turning Point हो सकता है। ऐसा नहीं कि एक बार असफल होने पर हम किसी काम के नहीं रहते। असफलता हमें बहुत कुछ सिखाती है, सबसे बड़ी बात ये है कि "हम असफल समय में नई Opportunities के लिए कितने तैयार हैं".
वर्ष 2000 में KBC की सफलता ने फिल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए। बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फिल्म के बाद इन्हें फिल्मों में अपना खोया हुआ सम्मान पुन:प्राप्त हुआ और उसके बाद की कहानी तो आप सब लोग भली भांति जानते हैं. वे धीरे धीरे अपने को एक ब्रांड(Brand) की तरह बना चुके थे, जो आज तक कायम है.
सार :- Our SUCCESS Lies in, Constant Learning from FAILURES and in Giving Our 100% Toward the Desired results. मित्रों इसी तरह हम भी अपने को ब्रांड(Brand) की तरह बना सकते हैं.
उन्होंने अपने करियर में अनगिनत पुरस्कार जीते।
- इन्होंने पोलियो उन्मूलन, तंबाकू निषेध, HIV/एड्स जैसे awareness campaign में भी काम किया है.
सार :- जैसे जैसे हम बड़े होते जाएं, समाज के प्रति भी हमारी जवाबदेही ज्यादा हो जाती है.
वे शुद्ध शाकाहारी हैं और 2012 में 'पेटा' इंडिया द्वारा उन्‍हें 'Hottest Vegetarian' करार दिया गया।
- उनकी आज की उम्र :- 73 साल के बुजुर्ग या 73 साल के जवान ?????
सार :- मित्रों Success is not a Destination, it's a journey.
आज की तारीख में हम सब बोलते है की अमिताभ जी कितने Lucky इंसान हैं.
पर मित्रों अमिताभ जी ने हम नई पीढ़ी के लिए अपने कर्मों, धैर्य, Risk लेने की क्षमता, Skill से शायद LUCK की परिभाषा ही बदल दी है :-
Luck is not a Chance, Luck is Engineered.
Luck कोई तुक्का नहीं है, Luck बनाया जाता है.


दुनिया का सबसे मुश्किल काम :-
दूसरे की गलती पर उसको माफ़ करना और अपनी गलती के लिए दूसरों से माफ़ी मांगना।
अगर हम ये दोनों काम करने में सफल हो गए तो समझो हमने उसी पल से अपनी Progress और रिश्तों के सारे के सारे रास्ते जिंदगी भर के लिए खोल दिए ......
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हमारे पास हमेशा ही दो Options होते हैं :-
कुछ उदहारण लेते हैं :-
1) आज सुबह सुबह मेरे लड़के ने नास्ते की टेबल में मेरी कमीज के ऊपर चाय गिरा दी या मेरा अपनी धर्मपत्नी से किसी बात पर झगड़ा हो गया :-
Option 1 - मैं उनके ऊपर गुस्सा करके अपना मूड off करूँ और फिर पूरा दिन ऑफिस जाते समय गाड़ी में, ऑफिस में, अपने clients से, boss से Tension में बात करूँ और हर जगह Negativity फैलाऊ और अपने दिमाग रूपी computer की hard disk में Negativity की file बना लूँ.
Option 2 - मैं अपनी कमीज change करूँ और उससे प्यार से कहूँ की अगली बार थोड़ा ध्यान रखे और अपनी पत्नी के साथ हुए झगडे के लिए माफ़ी मांग लूँ अगर मेरी गलती है तो और मन ही मन उनको माफ़ कर दूँ अगर उनकी गलती है तो (चाहे उन्होंने मुझसे माफ़ी मांगी हो चाहे नहीं). इससे मेरा मूड off नहीं हुआ. बिना किसी Tension के ऑफिस गए, clients से, boss से सबसे बात की, जिससे हर जगह Positivity फैली.
2) मैंने ऑफिस में या स्कूल, कॉलेज में अपना काम पूरा नहीं किया, Boss या टीचर ने डांट दिया या अपने दोस्त से किसी बात पर लड़ाई हो गयी :-
Option 1 - मैं उनसे चिड़ कर सब जगह उनके against बात करके negativity फैलाऊ और अपने दिमाग रूपी computer की hard disk में Negativity की file बना लूँ.
Option 2 - सबसे पहले उनसे माफ़ी मांगू, फिर अपने अंदर की कमी देख कर उसको ठीक करने की कोशिश करूँ , जिससे कि आगे चल कर मैं वो गलती दुबारा न करूँ. पर अधिकतर बार गलती ये हो जाती है कि हम माफ़ी तो मांग लेते हैं पर उसके बाद उस गलती से सीखते कुछ नहीं, यही लाइफ का सबसे बड़ा blunder करते हैं हम लोग. ये हमें बदलना होगा.
मित्रों ध्यान रहे हमारी progress का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है :-
1) कई बार ऊपर वाले Examples में हमें ये लगता है की अगर किसी ने हमें डांट दिया तो दुनिया के सामने हमारी बेइजत्ती हो गयी. आपका मन कहेगा "मैं", "मैं" और माफ़ी मागूंगा (मैं तो शेर हूँ शेर और शेर कभी माफ़ी मांगता है) और छोटी सी बात पर तिल का ताड़ बन जायेगा. इसी Ego में हम माफ़ी मांगने की बजाए जबरदस्ती नए नए explanation देते रहते है. इन ऊपर वाले इस तरह के examples के लिए Shakespeare ने भी कहा है - Never play with the feelings of others because you may win the game but the risk is that you will surely lose the person for a life time.
2) किसी से अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि उस माफ़ी से आपका बड़प्पन झलकता है. बहुत बार मैंने कइयों को ये कहते सुना है की भाई माफ़ी तो मैंने कई बार मांग ली पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता. इस case में आप उनसे ही माफ़ी मांगने का तरीका पूछ लीजियेगा ??? क्या पता कोई नया तरीका आपके पास भी आ जाये माफ़ी मांगने का, जिससे बात जल्दी खत्म हो जाये. Important बात ये है कि किसी भी हालत में गलतफैमियों को Positive Nod में खत्म करना है, वो भी दिल से.
3) अब दोस्तों जिंदगी में Problems (10%) तो आनी हैं ये तो तय है जिसको हम रोक नहीं सकते, अब problems आते ही हम उस पर react (90%) कैसे करते हैं, यही अच्छी और खुशहाल जिंदगी का राज है, Negative file अपने दिमाग रूपी कंप्यूटर में create करके या Positive यादों के साथ, ये हमारी सोच पर निर्भर करता है ……(दोस्तों 10% of life is made up of what HAPPENS to us & 90% of life is decided by how we REACT)
4) दोस्तों आज ही कसम खा लें कि किसी भी हाल में चाहे जो भी circumstances आ जायें हम अपने दिमाग रूपी Computer में Negative File नहीं बनने देंगे और अगर बनी भी है तो उन्हें जल्द से जल्द delete करेंगे.
दूसरे को उनकी गलती पर माफ़ कर देंगे (चाहे वो हमसे माफ़ी मांगे या न मांगे) और अपनी गलती के लिए उनसे माफ़ी मांग लेंगे क्योँकि दिल और दिमाग दोनों से ही हम ये जानते हैं की अगर हम ये दोनों काम करने में सफल हो गए तो समझो हमने उसी पल से अपनी Progress और रिश्तों के सारे रास्ते जिंदगी भर के लिए खोल दिए....


इंसान के द्वारा बोली गई बातें और किया हुआ काम अच्छा हो या बुरा हर दिशा में 3 से 5 गुना नहीं, बल्कि हजारों गुना गूंज गूंज कर फैलता ही फैलता है …… -----------------------------------------
एक बार मैं घूमने गया. वहां लोगों ने बताया की यहाँ एक ऐसा स्थान है जहाँ से बोलने से सबकी आवाज़ 3 से 5 गुना लौट कर आती है, ऐसे स्थान को हम लोग ECHO Point (आवाज़ का गूंजना) भी कहते हैं. लोगों ने यह भी बताया कि इस जगह से जो भी बोलेंगे वह बात 3 से 5 बार गूंज गूंज कर वापस आएगी और मुझे तो सुनाई देगी ही देगी, यहाँ पर हम सब लोगों को भी सुनाई देगी। मैंने भी ऐसा करने की सोची और दो बार आवाज़ लगाई और जो जो बोला और उसकी आवाज़ किस तरह से गूंजी और सबको सुनाई दी, वह इस प्रकार है :-
1) मैंने पहली बार आवाज़ लगाई - तुम अच्छे हो.
वहां से आवाज़ लौट कर आई और सबने सुनी - तुम अच्छे हो, तुम अच्छे हो, तुम अच्छे हो, तुम अच्छे हो, तुम अच्छे हो.
2) मैंने दूसरी बार आवाज़ लगाई - तुम गंदे हो.
वहां से आवाज़ लौट कर आई और सबने सुनी - तुम गंदे हो, तुम गंदे हो, तुम गंदे हो, तुम गंदे हो, तुम गंदे हो.
(मित्रों यहाँ महत्वपूर्ण ये है कि आवाज सिर्फ मैंने अकेले लगाई थी, पर जब वो लौट कर आई तो सबने सुनी।
मित्रों, ये पूरी सृस्टि भी एक ECHO System पर काम करती है, हम दूसरों के लिए जो भी बोलेंगे, दूसरों से जैसा व्यव्हार करेंगे, दूसरों की जो भी मदद करेंगे, जो भी करेंगे अच्छा या बुरा, वो हमारे पास या हमारे किसी करीबी के पास गूंज गूंज कर लौट कर आएगा ही आएगा, बस इसमें एक SUSPENSE है कि - कब आएगा, कैसे आएगा, कितना आएगा, यह कोई नहीं जानता ?? पर यह इस बात पर निर्भर होगा कि हम अपने रोज़ के कर्म किस दिशा में ले कर जा रहे हैं.
जैसे कि हर काम, हाँ मित्रों हर काम करने से पहले हमारे पास दो choice होती है जो हमारी Destiny (भाग्य) तय करती है.
जैसा की ऊपर वाले Example में मैंने किया, अच्छा भी बोला और बुरा भी बोला, दोनों ही Case में Result हम सभी के सामने था.
किसी ने सही कहा है :-
पत्ते फूल को कितना भी छुपाने की कोशिश करें, फूल की खुशबू हवा की दिशा में बहती ही बहती है. उसी तरह कबाड़ की बदबू भी हवा की दिशा में बहती है.
अब एक महत्रपूर्ण बात - फूल की खुशबू और कबाड़ की बदबू तो चलो हवा की दिशा में बहती है पर इंसान के द्वारा बोली गई बातें और किये हुए काम अच्छे या बुरे हर दिशा में 3 से 5 गुना नहीं, बल्कि हजारों गुना गूंज गूंज कर फैलते है।
मित्रों जो बोलें, जब बोलें, जिसके बारे में बोलें या जो करें, जब करें, जिसके लिए करें, ध्यान रहे वो अच्छा हो या बुरा, आगे गूंज गूंज कर जायेगा ही जायेगा।
कोई भी बात Secret एक ही Condition में रह सकती है जब वो बात सिर्फ और सिर्फ आपको पता हो.
अगर बात आपके मुँह से निकली तो सामने वाले को आप कितनी भी कसमें खिलवा दें वो हवा में चारों तरफ गूंज गूंज कर फलेगी ही फलेगी.
आपके द्वारा किया हुआ कोई भी काम आप कितना भी छुपा लें वो हवा में चारों तरफ गूंज गूंज कर फैलेगा ही फैलेगा.
इसलिए मित्रों जब उस बात ने चारों तरफ गूंज गूंज कर फैलना ही है तो क्योँ न दूसरों के बारे में अच्छी बातें फैलाएं, उनके बारे में अच्छा बोलें, उनके लिए अच्छा काम करें, क्या जरुरत है दूसरों के बारे में बुरी-बुरी बातें बोलने की या उनके रास्तों में गड्ढे खोदने की जबकि एक न एक दिन पता लग ही जाना है कि ये बातें किसने फैलाई या ये काम किसने किया।
हम अच्छे तो जग अच्छा ..........

कब, कहाँ और कैसे हथौड़ा मारना चाहिए, ये शायद मुझे ही पता है
- एक बुजुर्ग अनुभवी भारतीय
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एक फैक्ट्री में एक इंजन ख़राब हो गया, बहुत सारे इंजीनियरों को बुलाया गया पर कुछ नहीं हुआ. फैक्ट्री को हर दिन लाखों रुपये का Loss हो रहा था.
एक दिन सारे इंजीनियर एक चाय की दुकान में बैठ कर इस Problem को discuss कर रहे थे, वहां बैठा एक बूढ़ा व्यक्ति सारी बातें सुन रहा था. उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा - इंजीनियर साहब, क्या मैं वो इंजन देख सकता हूँ. सबने कहा - अरे ताऊ जब हमसे कुछ नहीं हुआ तो तुम क्या कर लोगे।
फिर भी बूढ़े व्यक्ति की जिद पर उनको इंजन दिखा दिया गया.
उस बूढ़े व्यक्ति ने एक मिनट सब कुछ देखा और फिर एक हथौड़ा माँगा।
("Life doesn't change in ONE MINUTE, but taking decision after thinking for ONE MINUTE can change life.")
बस एक ही हथौड़ा मारा होगा उस बूढ़े व्यक्ति ने कि इंजन चालू हो गया.
सब लोग खुश.
उनसे पूछा गया कि कितने पैसे देने हैं, तो बूढ़े व्यक्ति ने कहा 1 लाख रुपये।
ये सुनकर 3 - 4 लोगों को तो चक्कर आ गया. जब उनसे बोला गया कि आपने करा ही क्या है, एक हथौड़ा ही तो मारा है.
तो उन बूढ़े व्यक्ति का जवाब सुनकर शायद सबका सिर चकरा गया होगा, उन्होंने कहा " बेटा, हथौड़ा तो एक ही मारा है, पर कब, कहाँ और कैसे हथौड़ा मारना चाहिए, ये शायद मुझे ही पता है.
(Effort is important, but knowing where to make an effort in your life, makes all the difference.)
सार ये है कि :-
- हम इंसानों की समस्या है कि हम दूसरों के अनुभव (Experience), न तो लेते हैं, न ही किसी की सुनते हैं, न ही सुनना चाहते है, Self EGO से ग्रस्त हैं हम सब और अगर समस्या का समाधान पूछते भी है तो अपनी ही age group या अपने ही साथ के दोस्त से. सोचिये आपके साथ वाले को भी तो लगभग उतनी ही knowledge होगी।
- यहाँ पर आप लोग ही बताइये कि कितने लोग अपनी Family के बड़े बुजुर्गों या पड़े लिखे लोगों से उनका Experience लेते हैं ?
- हफ्ते में कितनी बार आप अपने माता - पिता, दादा - दादी या और कोई बुजुर्ग रिस्तेदार, दोस्त, पुराना Experienced साथी की मदद लेते हैं ?
- दोस्तों हर समस्या का हल है, अगर आपके पास उस समस्या का हल नहीं है तो इस ग़लतफ़हमी में मत रहिये कि आपके अपने भी उस समस्या का हल नहीं निकाल सकते, यकीन मानिये वो लोग अपने Experience से उस समस्या का हल चुटकियों में निकल देंगे। यहाँ सबसे बड़ी समस्या हम Young पीढ़ी की यह है कि, हम ये समझते हैं कि अगर हमने उन लोगों से अपनी problem discuss की तो वो लोग क्या कहेंगे, पता नहीं क्या सोचेंगे……
अरे भाई Tension मत लो तुम एक चीज पूछगे वो लोग अपने Experience से 10 solutions बता देगें और एक फायदा और हो जायेगा, आप लोगों में अपनापन भी बढ़ेगा ……
- मेहनत तो दुनिया में हर कोई कर रहा है, इसमें हम अपने आप के अंदर ये ग़लतफ़हमी न पालें कि दुनिया में मेहनत सिर्फ और सिर्फ हम ही कर रहे हैं.
- सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात है कि मेहनत कब करनी है और दिमाग कब लगाना है ये पता होना चाहिए, जैसे कि ऊपर वाली कहानी में सभी इंजीनियर परेशान होने के बावजूद, उस कंपनी के पुराने इंजीनियर या हेल्पर से सलाह लेते तो शायद काम बहुत जल्दी हो जाता।
हाँ सबसे आखरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, दोस्तों हम किसी का Experience पैसों से नहीं खरीद सकते, पर प्यार से पूछने पर वो लोग तुम पर अपना Experience न्योछावर कर देंगे। विश्वास नहीं होता तो कर के देख लो, इसमें बुराई क्या है........

जगाइए अपने कप्तान को, यही आपको बुलंदियों तक पहुंचाएगा .........
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Case Study :- 1
आप को अगले दिन सुबह सुबह 4 बजे ट्रेन से कहीं जाना है और आपने घड़ी में अलार्म लगा दिया, क्या आपने कभी गौर किया कि आपकी नींद 4 बजे से पहले ही खुल गयी, अलार्म बजने से पहले। ऐसा क्यों हुआ, कभी आपने जानने की कोशिश की .......
ऐसा इसलिए हुआ क्योँकि रात को सोने से पहले आपने अपने अवचेतन मन को आदेश दिया था कि कल सुबह सुबह मुझे ट्रेन पकड़नी है.
अब प्रश्न यह उठता है कि ये अवचेतन मन (Subconscious Mind) है क्या ??????
अवचेतन मन :- अवचेतन मन समझने के लिए हमें अपने शरीर को जहाज और अवचेतन मन को उसका कप्तान समझना पड़ेगा ।
अब हुआ ये कि रात को आपने अपने अवचेतन मन रूपी कप्तान को आदेश दिया कि आपको अगले दिन सुबह सुबह 4 बजे ट्रेन पकड़नी है इसलिए आपको 4 बजे उठा देना। अब मित्रों आप ये मानिये कि अब काम जहाज का न होकर कप्तान का हो गया कि आपको सुबह सुबह उठाना है, आप तो बिंदास हो कर सो जाइए और यकीन मानिये जब सुबह हुई होगी तो आपके कप्तान ने आपको अलार्म से भी पहले उठा दिया होगा ।
अब यहाँ पर कुछ लोग मुझसे सहमत नहीं होंगे।
मित्रों यहाँ पर आपको ध्यान रखना है कि आपको अपने कप्तान को कंफ्यूज नहीं करना है, होता क्या है कि हम अपने कप्तान को ........साफ साफ आदेश नहीं देते.......... और इसलिए कई बार हमारा कप्तान सही से काम नहीं करता, जैसे की अब ये सोचिये कि आपने अपने कप्तान से कहा कि ट्रेन मिलेगी तो ट्रेन से चला जाऊंगा, बस मिलेगी तो बस से चला जाऊंगा, टैक्सी मिलेगी तो टैक्सी से चला जाऊंगा।
अब आप ही बताइये कि आपने क्या किया ?
आपने अपने कप्तान को बुरी तरह से कंफ्यूज कर दिया।
अब आपके कप्तान ने कहा "मैं भी चला सोने", और जिंदगी भर सोते ही रहना, मैं भी सोते रहूँगा। मैं तो सिर्फ और सिर्फ तभी काम करूँगा जब मेरा जहाज यानी आप मुझे बिलकुल साफ़ साफ़ आदेश दोगे.
कप्तान ने कहा हे इंसान "मन भटकता तेरा है और अपनी विफलता के लिए कोसते अपनी किस्मत और दूसरे लोगों को हो", वाह रे वाह ..........
नोट :
अवचेतन मन की स्थितियाँ :-
(1) (i) रात को कमरे की लाइट बंद होने और नींद आने के बीच का समय या
(ii) सुबह नींद खुलने से लेकर और बिस्तर से उठने के बीच का समय या
(iii)) कभी भी झबकी आने के बीच का समय
2) इन सभी समय पर आपको अपने कप्तान को साफ़ साफ़ आदेश देना है - जो भी काम आप जिंदगी में करना चाहते है, आप जिन भी ऊचाइयों पर पहुँचाना चाहते हैं.
3) एक बात का ख्याल रखें - इस बीच अगर आपने अपने कप्तान को नकारात्मक विचार दे दिए तो वो आपको नकारात्मकता की तरफ ही ले कर चला जायेगा, इसलिए कभी भी इन स्थितियाँ में अपने कप्तान को नकारात्मक विचार न दे, न ही अपने मन में आने दें.
4) इस बीच आप अपने कप्तान को सिर्फ और सिर्फ सकारात्मक विचार दे और फिर देखिएगा कि आपका कप्तान आपको किन बुलंदियों पर पहुंचाता हैं ………
मित्रों यह एक सीरिज है, कृपया कोई भी Case Study न छोड़ियेगा। जैसे कि Case Study 2, Case Study 3, Case Study 4 इत्यादि
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छोटी छोटी मोटिवेशनल और प्रेरणादायक कहानियों के लिए - Self Motivation पेज को Like करें और अगर इन कहानियों से आप मोटीवेट हो रहें हैं तो अपने दोस्तों को भी Self Motivation पेज को Like करने को कहें या इस पेज पर Visit करें, क्योँकि हमारा मानना है कि :-
यदि आप किसी की भी सहायता करने के काबिल है, तो करें.
हो सकता है आपके द्वारा की हुई छोटी सी मदद पूरी दुनिया में बदलाव की लहर न ला पाए, पर वो एक व्यक्ति, जिसकी आपने मदद की है, आपकी वजह से उसकी दुनिया में तो खुशहाली आ ही सकती है ..........

गधा कुएँ से कूदकर भाग गया ........
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In one minute we can change our attitude
and
in that minute we can change our entire day,
sometimes entire life......

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Short Story :
एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा । अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।
मित्रों हमारे जीवन में भी बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी गिरेगी। जैसे कि ,हमें आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही हमारी आलोचना करेगा ,कोई हमारी सफलता से ईर्ष्या के कारण हमें बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई हमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो हमारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में हमें हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

The Permanent Temptation Of Life Is To Confuse Dreams With Reality
But
The Permanent Defeat Of Life Is When We Surrender Our Dreams To Reality.

99% of the times we surrender ourself against real situations,
problems will come & problems will end, no one in this world is without problem.

so always keep your dreams on the top....... don't surrender them...... ----------------------------------------------------------
Short story :-
एक बार की बात है कि एक ....... बाज का अंडा ....... मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था.
तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-
” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”
तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”
बाज के बच्चे......... ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.
दोस्तों , हममें से बहुत से लोग उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना ज़िन्दगी जीते रहते हैं.हम ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.
हमें चूजों की तरह नहीं बनना, हमें अपने आप पर, अपनी काबिलियत पर भरोसा करना चाहिए. हम चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचाने और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर दिखाएं क्योंकि यही हमारी वास्तविकता है.

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